Atmadharma magazine - Ank 378
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २५०१ आत्मधर्म : ४१ :
ओळख. आत्माना अज्ञानथी चारे गतिमां घणां दुःखो ते भोगव्या...हवे तो शांत
थईने आत्माने ओळख.
मुनिराजनां मीठां वचन सांभळीने हाथीने घणो वैराग्य थयो; तेने पोताना
पूर्वभवनुं जातिस्मरणज्ञान थयुं. पोताना दुष्कर्म माटे तेने घणो पस्तावो थयो; तेने
आंखोमांथी आंसुनी धार पडवा लागी, विनयथी मुनिराजनां चरणोमां माथुं नमावीने
तेमनी सामे जोई रह्यो....कुदरती तेनुं ज्ञान एटलुं ऊघडी गयुं के ते मनुष्यनी भाषा
समजवा लाग्यो...अने मुनिराजनी वाणी सांभळवा तेने जिज्ञासा जागी.
मुनिराजे जोयुं के आ हाथीना जीवना परिणाम अत्यारे विशुद्ध थया छे, तेने
आत्मा समजवानी तीव्र जिज्ञासा जागी छे....अने ते एक होनहार तीर्थंकर छे....एटले
अत्यंत प्रेमथी (वात्सल्यथी) ते हाथीने उपदेश देवा लाग्या.
मुनिराज कहे छे: अरे हाथी! तुं शांत था. आ पशुपर्याय ए कांई तारुं स्वरूप
नथी, तुं तो देहथी भिन्न चैतन्यमय आत्मा छो. तुं हाथी नथी, तुं तो आत्मा छो.
आत्माना ज्ञान वगर घणां भवमां तें घणा दुःख भोगव्यां, हवे तो आत्मानुं स्वरूप
जाण अने सम्यगदर्शनने धारण कर. सम्यग्दर्शन ज जीवने महान सुखकर छे. क्रोध अने
ज्ञानने एकमेक अनुभववानो अविवेक तुं छोड.....छोड! तुं प्रसन्न था...सावधान था...
अने सदाय उपयोगरूप स्वद्रव्य ज मारुं छे एम तुं अनुभव कर. तेथी तने घणो आनंद
थशे. तुं निकटभव्य छो, थोडा भव पछी भगवान थवानो छो, ने आ भरतक्षेत्रमां जे
तेवीसमा पारसनाथ तीर्थंकर थशे–ते तुं पोते ज छो. माटे आजे ज आवो अनुभव कर.
हाथी खूब भक्तिथी सांभळे छे. भगवान थवानी वात सांभळतां तेनो आत्मा
नाची ऊठे छे. तेनी आंखमांथी आंसुनी धार वहे छे. मुनिराजना श्रीमुखथी आत्माना
स्वरूपनी अने सम्यग्दर्शननी वात सांभळतां तेने घणो हर्षोल्लास थाय छे, तेनां
परिणाम वधुने वधु निर्मळ थतां जाय छे....तेना अंतरमां सम्यग्दर्शननी तैयारी चाली
रही छे.
मुनिराज तेने आत्मानुं परम शुद्धस्वरूप देखाडे छे: रे जीव! तारो आत्मा
अनंत गुणरत्नोनो खजानो छे...आ हाथीनुं जाडुं शरीर ते तो पुद्गल छे, ते कांई तुं
नथी. तुं तो ज्ञानस्वरूप छो. तारा ज्ञानस्वरूपमां पाप तो नथी ने पुण्यनो शुभराग
पण नथी; तुं तो वीतराग आनंदमय छो–आवा तारा स्वरूपने अनुभवमां लईने
सम्यग्दर्शन धारण कर.