Atmadharma magazine - Ank 378
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २५०१ आत्मधर्म : ४३ :
शांतिनो पिंड एवो पोते–ते सिवाय बीजुं कोई ते वखते न हतुं.”
–आम सम्यग्दर्शन थतां हाथीना आनंदनो कोई पार नथी. तेनी आनंदमय
चेष्टाओ, तथा तेनी आत्मशांति देखीने मुनिराजने पण ख्याल आवी गयो के आ
हाथीनो जीव आत्मज्ञान पाम्यो छे. भवनो छेद करीने ते मोक्षना मार्गमां आव्यो छे.
मुनिराजे प्रसन्न थईने हाथ ऊंचो करीने हाथीने आशीर्वाद आप्या.
संघना हजारो लोको आ द्रश्य देखीने बहु खुशी थया. एक क्षणमां आ बधुं शुं
बनी रह्युं छे ते सौ आश्चर्यथी जोवा लाग्या.
आत्मानुं ज्ञान थतां हाथी तो घणा ज भक्तिभावथी मुनिराजनो उपकार
मानवा लाग्यो...अरे, पूर्वे आत्माना भान विना आर्तध्यान करवाथी हुं पशुदशाने
पाम्यो, पण हवे आ मुनिराजना प्रतापे मने आत्मभान थयुं छे, ने ते आत्माना ध्यान
वडे हवे हुं परमात्मा थईश.–एम विचारीने ते हाथी सूंढ नमावीने मुनिराजने नमस्कार
करतो हतो.
(जुओ तो खरा, बंधुओ! आपणो जैनधर्म केवो महान छे के तेना सेवन वडे
एक पशु पण आत्मज्ञान करीने परमात्मा बनी शके छे! दरेक आत्मामां परमात्मा
थवानी ताकत छे–एम आपणो जैनधर्म बतावे छे. वाह....जैनधर्म...वाह!)
मुनिराज पासेथी सम्यग्दर्शननुं स्वरूप समजीने, हाथीनी साथेसाथे बीजा पण
घणाय जीवो सम्यग्दर्शन पाम्या. जेम तीर्थंकर एकला मोक्षमां न जाय, बीजा घणाय
जीवो पण तेमनी साथे मोक्ष पामे, तेम अहीं तीर्थंकरनो आत्मा सम्यग्दर्शन पामतां,
बीजा घणाय जीवो पण तेमनी साथे सम्यग्दर्शन पाम्या; अने चारेकोर धर्मनो
जयजयकार थई गयो. थोडीवार पहेलांं जे हाथी गांडो थईने हिंसा करतो हतो. , ते ज
हाथी हवे आत्मज्ञानी थईने शांत अहिंसक बनी गयो, अने मुनिराज पासेथी फरी फरी
धर्म सांभळवा माटे आतुरताथी तेमनी सामे जोई रह्यो. घणा श्रावको पण उपदेश
सांभळवा बेठा हता.
श्री मुनिराजे मुनिधर्मनो तथा श्रावकधर्मनो उपदेश आप्यो: सम्यग्दर्शन अने
आत्मज्ञान उपरांत ज्यारे चारित्रदशा थाय एटले के आत्मानो घणो अनुभव थाय
त्यारे जीवने मुनिदशा थाय छे. ते मुनिओ उत्तम क्षमा वगेरे दश धर्मोने पाळे छे. अने
हिंसादिक पांच पापो तेमने जराय होतां नथी एटले अहिंसा वगेरे पांच महाव्रत तेमने
होय छे.