Atmadharma magazine - Ank 378
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: ५०: आत्मधर्म : चैत्र : २५०१
* जिनेन्द्रदेवना अचिंत्यस्वरूपने ओळखतां आत्मा ओळखाय छे. *
निर्मळपर्याय पण तेनी कर्ता नहि. ते समये स्वाश्रयवडे आत्मा पोते ज
तेना कर्तापणे परिणम्यो छे.
३७. चैतन्यनी प्रभुताथी शोभतो भगवान आत्मा पोते ज स्वतंत्रपणे
निजशक्तिथी पोताना निर्मळकार्यनो कर्ता थाय छे.
३८. भाई, तारा कार्य माटे जगतनी सामे न जो......तारामां ज जो;
–केमके स्वतंत्रपणे तारा सम्यक्त्वादि कार्यनो कर्ता थवानी ताकात
तारा आत्मामां ज छे.
३९. क्षायिक सम्यक्त्वरूप कार्य केवळी के श्रुतकेवळीनी समीपमां ज थाय
एवो नियम छे, –तो शुं ते कार्यना कर्ता केवळी के श्रुतकेवळी छे?
ना; ते आत्मा पोते ज पोतानी कार्यशक्तिथी तेनो कर्ता थाय छे.
४०. अहो, आ तो वीरप्रभुए वहावेली संजीवनी छे....के जेने झीलतां
चैतन्यनुं खरूं जीवन प्राप्त थाय छे. भाई, अंतर्मुखद्रष्टिवडे तारा
आत्मभंडारने खोल, ने साचुं आनंदमय जीवन जीव.
४१. अंतर्मुख थईने निर्मळपरिणाम थया–सम्यग्दर्शन थयुं, ज्ञान थयुं,
चारित्र थयुं, तेनुं साधन पोतानी करणशक्तिवडे आत्मा पोते ज
थाय छे.
४२. अहा, आ साधकपणानुं साधन! भाई, तारामां ज तारुं साधन
पड्युं छे. तारो आत्मा पोते ज एवो कारणपरमात्मा छे के
सम्यग्दर्शनादिनुं साधन थाय.
४३. व्यवहारमां अनेक प्रकारना साधनोनुं कथन आवे, पंचेन्द्रिय ते
साधन, सत्समागम ते साधन, शुभराग ते साधन, पूर्वनी पर्याय
ते साधन–परंतु ए बधाने उपचारथी साधन क्यारे कहेवाय? –के
अंतर्मुख थईने चिदानंदस्वभावने ज्यारे साधन बनावे छे त्यारे.
४४. भाई, तारा सर्व साधन तारा चैतन्यधाममां ज छे केमके–
ज्यां चेतन त्यां सर्व गुण...केवळी बोले एम.
४५. अहो, मारुं चैतन्यधाम ज मारा सर्व साधनथी परिपूर्ण छे–एम
पहेलांं एनी रुचि थवी जोईए. रुचि थतां ते तरफ परिणमन थाय छे.