: चैत्र : २५०१ आत्मधर्म : ५३:
* कटोकटीना प्रसंगमां पण मुमुक्षुना समाधाननी रीते कोई अनेरी छे *
अहो, वीतरागी वीरनाथप्रभुए प्रकाशेलुं आपणुं जैनशासन!
आ जैनशासननी वीतरागता एवी अजोड छे के जीवने क्यांय अशांति
थवा देती नथी. जैनशासनना सेवनवडे प्रगटेली चैतन्यतत्त्वनी वीतरागी
शांतिमां अशांति ऊभी करवानी ताकात जगतना कोई ज प्रसंगमां नथी.
परम वैराग्यरसघोलनने लीधे मुमुक्षुनुं चित्त संसारमां क्यांय
चोटतुं नथी...एनी वैराग्यभावना निरंतर वधती ज जाय छे.
हे मुमुक्षु! तें चैतन्यनुं मुमुक्षुपणुं प्रगट कर्युं छे, तो हवे ते
मुमुक्षुपणानुं एक वधु पगथियुं चडीने आत्मामां पहोंची जाजे....बस, पछी
तो संसारनी लाखो मुंझवण पण तने डगावी नहि शके. जगतनी बधी
मुंझवणो वच्चे अडग रहीने मार्ग काढी लेनारुं परम–परम शांत आपणुं
चैतन्यतत्त्व–के जे महावीरप्रभुनी प्रसादीरूपे आपणने मळ्युं छे–तेने याद
करीने, तेना ज आधारे धैर्य–शांति–समाधान बधुंय मेळववानुं छे. अने ए
रीते थती शांतिमां जे वीतरागता छे ते जगतमां अजोड छे.
आघातना प्रसंगोमां दुनिया तो दुनियानी रीते समाधान करे छे;
पण मुमुक्षुनी चैतन्यरसमय समाधाननी रीत दुनियाथी नीराळी छे. क्यांय
राग–द्वेषनी वृद्धिवगर ते पोतानी शांतिमां वृद्धि करे छे, ने ए ज साचुं
समाधान छे.
हुं तो ज्ञान छुं–एवी निजभावनामां तत्पर मुमुक्षुने, जगतनो
कोई प्रसंग शुं तेना मार्गथी चलित करवा समर्थ छे? पोते पोताना
आत्माथी ज प्रसन्न रहेनारो ते जीव संयोग पासेथी शांतिनी भीख
मांगतो नथी, पोते ज स्वयं शांतभावरूप थई जाय छे.
वीरनाथ अने बाहुबली जेवा संतो जगतने संदेश आपी रह्या छे
के दुनियामां गमे ते बनो, मोक्षनो साधक तो पोतानी आत्मसाधनामां
मस्त रहे छे–दुनियाथी अलिप्त!
वाह रे वाह, ज्ञायकतत्त्व! तारी बलिहारी छे.