: ५४ : आत्मधर्म : चैत्र : २५०१
महावीर भगवाननो मोटो उपकार छे
[ज्ञानथी, भक्तिथी, ने तन–मन–धनथी सौ उत्सवमां भाग ल्यो.]
चैत्रसुद तेरसे भगवानना जन्मनी मंगल वधाई आवी गई.
अत्यारे भगवान महावीरना अढीहजारवर्षीय निर्वाणमहोत्सवनो मंगल
नाद भारतभरमां खुणे खुणे प्रसरी रह्यो छे. आखो देश जाग्यो छे,
–मंदिरो ने मकानो महावीरप्रभुनी भक्तिना जयनादथी गुंजी रह्या छे...
जाणे फरीने धर्मयुग आवी रह्यो छे. आपणा सर्वे जैनबंधुओ!–बेनो!
जागो....आनंदथी हळीमळीने आत्मसाधना करतां–करतां भगवानना
मोक्षनो उत्सव ऊजवो. प्रभुए आपणने जे मोक्षमार्ग बताव्यो छे ते
मोक्षमार्गना ज्ञानवडे, तेमना सर्वज्ञता वगेरे गुणोप्रत्येनी भक्तिवडे, तन–
मन–धनने शासननी सेवामां जोडीने, धर्मप्रभावना करो; –हरकोई प्रकारे–
जे रीते स्व–परने लाभ थाय ते रीते–आनंदमय उत्सवने ऊजवो. उत्सव
ऊजववाना हजारो प्रकार छे, तेमांथी जे प्रकार तमने रुचे ते प्रकारे उत्सव
ऊजवो. आपणा भगवाननो उत्सव आपणे सौ जैनो नहि उजवीए तो
बीजुं कोण उजवशे? उत्सवद्वारा प्रभुनी भक्ति करवी ते आपणी फरज छे,
–केमके– ‘न हि कृतमुपकारं साधवो विस्मरन्ति। ’ तो प्रभुना परम
उपकारोने आपणे केम भूलीए?
आ महान उत्सव माटे प्रसन्नतापूर्वक पोतानी सम्मति अने आशीर्वाद
आपतां पू. श्री कानजीस्वामीए जयपुरमां, फत्तेपुरमां, सोनगढमां तेमज
मुंबई वगेरेमां वारंवार कह्युं छे के–
बधा जैनोए भेगा थईने आनंदथी महावीर भगवानना निर्वाणना
अढी हजार वर्षनो उत्सव करवो–ते सारुं छे. ते जैनधर्मनी प्रसिद्धिनुं तथा
प्रभावनानुं कारण छे. तेमां मतभेद भूलीने सौए साथ आपवो जोईए.
जैनना बधा संप्रदायोए मळीने भगवान महावीरना मार्गनी प्रसिद्धि
थाय ते करवा जेवुं छे; तेमां कोईए विरोध करवो न जोईए. अरसपरस
कोई जातना कलेश वगर सौ साथे मळीने महावीर भगवाननो उत्सव
थाय ते तो सारी वात छे. महावीर भगवानना