: चैत्र : २५०१ आत्मधर्म : ५५ :
वीतरागमार्गमां परस्पर कलेश थाय तेवुं कोईए करवुं जोईए नहीं.
जगतमां जैनसमाजनी शोभा वधे, दुनियामां तेनो महिमा प्रसिद्ध थाय ने
भगवानना उपदेशनी प्रभावना वधे–तेम आपणे सौए करवुं जोईए.”
“सत्त्वेषु मैत्री’ नी उत्तमभावना, जेमां जगतना सर्वे जीवो
प्रत्ये निर्वेर क्षमाभाव भरेलो छे. ते भावना, आपणने वीरप्रभुना
वारसामां मळी छे....ते वारसो साचवीने तेमांथी वीतरागीआनंदनो लाभ
लईए, ने ‘गुणीषु प्रमोदं’ ज्यांज्यां साधर्मीना गुणो देखीए त्यां प्रमोद
करीए, एमां आपणी सौनी शोभा छे, तेमां आपणुं हित छे, ते आपणुं
कर्तव्य छे.
मंगल उत्सवनी मंगल नोबतो कयारनी
वागी चुकी छे....भक्तोना हृदय अनेरा
भक्तिभावथी झणझणी ऊठ्या छे...आबालवृद्ध,
साधको के जिज्ञासुओ सौ आनंदथी उत्सवमां भाग
लई रह्या छे ने पोतानी धार्मिकभावनाने पुष्ट करी
रह्या छे....अने....अने...देखो, देखो! महावीर
भगवान आपणा सौना उपर मंगल
आशीर्वाद वरसावी रह्या छे!
जय महावीर (ब्र. ह. जैन)
वीरप्रभुना मोक्षधाम पावापुरीमां मंगल प्रवचन
[वीर सं. २४८३ मां यात्रा प्रसंगे: फा. सुद २]
जुओ, आ पावापुरीधाममां महावीर भगवान निर्वाणपदने
पाम्या छे. देहथी पार ज्ञानानंदतत्त्वनुं भान तो पहेलेथी हतुं, ने एवा
भान सहित अहीं अवतर्या हता. त्यारबाद चारित्रदशा प्रगट करी, ने
वैशाख सुद दसमीए प्रभुने केवळज्ञान थयुं. केवळज्ञान पछी त्रीस वर्ष
सुधी सहजपणे ईच्छा विना विहार थयो ने दिव्य उपदेश नीकळ्यो....
त्यारबाद आ पावानगरीमां पधार्या, ने अंतिमदेशना बाद योग–निरोध
करीने अहींथी भगवान मोक्ष पाम्या; ते मोक्षस्थाननी बराबर उपर सिद्ध
भगवानपणे अत्यारे तेओ बिराजे छे.