: चैत्र : २५०१ आत्मधर्म : ५९ :
शासनमां बंनेनो केवो मजानो आश्चर्यकारी सुमेळ छे! अहो जिनेन्द्र!
तारा शासननी अद्भुतताने ज्ञानी ज जाणे छे. प्रभो! चारेकोर तारी
भक्तिथी दुनिया गाजी रही छे. त्यारे तुं तो तारी चेतनानी शांतिमां मस्त
थईने बेठो छो! वाह रे वाह! वीतरागमार्गना भगवान तो आवा ज
शोभेने!
वाह! जेना जन्मे हर्षनो आटलो खळभळाट! ते भगवान केवा!
हजी परमात्मपद पाम्या पहेलांं जे आत्मानो आटलो प्रभाव! तेना
परमात्मपदना महिमानी तो शी वात! आम आनंदोत्सवपूर्वक हजारो
भव्यजीवो प्रभुना जन्मोत्सवमां भाग लई रह्या छे. नानी नगरीमां
मोटो उत्सव थई रह्यो छे. स्वर्गथी ईन्द्रो ऊतरी पड्या छे. “भगवाननी
सवारी मारा उपर” एवा महान गौरवथी पेलो हाथी एवो मस्तान बनी
गयो छे....के बस! मारा उपर तीर्थंकरभगवान बेठा एटले हुं पण मोक्ष
पामीश! अरे, अचेतन वस्तुओ पण आजे जाणे आनंदित थती होय तेम
रत्नवृष्टि वगेरे द्वारा सुंदरता प्रगट करी रही छे! तो पछी चेतनवंता
भव्यजीवनी तो शी वात!! बालतीर्थंकरना अत्यंत महिमापूर्वक
आत्मअनुभूतिवाळा ईन्द्रोए प्रभुनो जन्माभिषेक कर्यो.–साथे साथे करोडो
भक्तोए आनंदथी तेमां अनुमोदन करीने पोतानां पापोनो पण अभिषेक
करी नांख्यो. सर्वत्र आनंद–आनंद छवाई गयो. शचीदेवी तो बाल–
तीर्थंकरने तेडीने खुशखुशाल थई गई; केमके बालतीर्थंकरने तेडतां एने
तो मोक्षनो सिक्को लागी गयो.
आम अत्यंत आनंदपूर्वक प्रभुनो जन्माभिषेक थयो. पछी प्रभुनी
सवारी ज्यारे नगरीमां पाछी फरती हती त्यारे ते आनंदकारी सवारीमां
बिराजमान बालतीर्थंकरना आश्चर्यकारी महिमाने देखीने, चैतन्यनी
अद्भुतताना लक्षवडे घणाय जीवो सम्यग्दर्शन पामी जता हता. –आ रीते
अनेक जीवोनुं कल्याण करनारो ए जन्मकल्याणक महोत्सव हतो.
अपूर्व महान आनंद उल्लासथी चैत्र सुद तेरसे प्रभुनो जन्मोत्सव
ऊजवो.
जय महावीर
धन्य घडी धन्य काळ शुभ देखो, कुसुम सुदेवनने वरसाये,
हरि अभिषेक कि््यो प्रभुजीको; हम ईत मंजुल मंगल गाये.