Atmadharma magazine - Ank 378
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: ६० : आत्मधर्म : चैत्र : २५०१
अर्जिकामाताजी साथे चर्चा
(सम्मेदशिखर जेवा तीर्थधाममां निवृत्तिपूर्वक रहीने
यात्रा करतां अने आत्महितनी भावना भावतां–भावतां,
एकाएक महाभाग्यथी चंदना के राजुलमाता जेवा कोई
अर्जिकामाताओनो संग मळतां मुमुक्षुबहेनने महाप्रसन्नता
थई....ने तेमनी साथे आत्महितनी चर्चा करी...शुं चर्चा करी?
–आ विषयसंबंधी आपणे जे निबंधो मांग्या छे तेनो एक
नमूनो अहीं आप्यो छे. (सं.)
मुमुक्षुबेन अर्जिकामाताओने वंदन करीने हर्ष व्यक्त करे छे के अहो माताजी!
महाभाग्यथी आजे आपना दर्शन थया; आपना सत्संगे मारी भावना जरूर पूरी थशे.
हे माता! अनुभूतिस्वरूप थयेलो आत्मा तमारा अंतरमां बिराजे छे, तो एवी
अनुभूति केम थाय! ते मने समजावो.
माताजी जवाब आपे छे: –हे बेटी! अनुभूतिनो महिमा घणो गंभीर छे,
आत्मा पोते ज्ञाननी अनुभूतिस्वरूप छे. ते ज्ञाननी अनुभूतिमां रागनी अनुभूति
नथी: –आवुं स्पष्ट भेदज्ञान करीने वारंवार ऊंडुं घोलन करतां अपूर्व अनुभूति प्रगटे छे.