: चैत्र : २५०१ आत्मधर्म : ६१ :
मुमुक्षुबेन पूछे छे के: हे माता! आत्मानी अनुभूति थतां शुं थाय!
माताजी कहे छे: –सांभळ बेन! तारी जिज्ञासा उत्तम छे. अनुभूति थतां आखो
आत्मा पोते पोतामां ठरी जाय छे; एमां अनंतगुणना चैतन्यरसनुं एवुं गंभीर वेदन
थाय छे के जेना महान आनंदने आत्मा ज जाणे छे. ए वेदन वाणीमां आवतुं नथी.
मुमुक्षु फरी पूछे छे: –हे माता! वाणीमां आव्या वगर ए वेदननी खबर केम
पडे! अर्जिकामाता उत्तर आपे छे: –हे पुत्री! पोते पोताना स्वसंवेदनथी आत्माने तेनी
खबर पडे छे. जेम आ सम्मेदशिखर पर्वत नजरे देखाय छे, तेम अनुभूतिमां आत्मा
तेनाथी पण स्पष्ट जणाय छे.
मुमुक्षुबेन फरी पूछे छे: – हे माता! आंख वडे सम्मेदशिखर जणाय तेनां
करतांय आत्माना ज्ञानने वधु स्पष्ट केम कह्युं!
माताजी जवाब आपे छे: –हे पुत्री! पहाडनुं ज्ञान तो ईन्द्रियज्ञान छे, एटले
परोक्ष छे, ने आत्माने जाणनारुं ज्ञान तो अतीन्द्रिय छे तेथी प्रत्यक्ष छे, माटे ते वधारे
स्पष्ट छे.
अनुभूतिना वधु ने वधु ऊंडाणमां जई रहेली ते मुमुक्षुबेन फरी पूछे छे के:–
अनुभूति वखते तो मति–श्रुतज्ञान छे छतां तेने प्रत्यक्ष अने अतीन्द्रिय केम कह्या!
माताजी जवाब आपे छे:– केमके अनुभूति वखते उपयोग आत्मामां एवो लीन
थयो छे के ईन्द्रियनुं के मननुं अवलंबन छूटी गयुं छे, तेथी ते वखते प्रत्यक्षपणुं छे.
अहा, ए वखतना अद्भुत निर्विकल्प आनंदनी शी वात!
मुमुक्षुबेन कहे छे के:– हे माता! तमे अनुभूतिनी अद्भुत वात समजावी. आजे
तो जाणे तमारा अंतरमांथी कोई अलौकिक चैतन्यरस झरी रह्या छे! महाभाग्ये आप
मळ्या ने अनुभूतिनुं रहस्य समजाव्युं, तो हुं य जरूर एवी अनुभूति प्रगट करीश ने
आपनी साथे रहीश.
माताजी आशीर्वाद आपतां प्रसन्नताथी कहे छे:– बेटी! धन्य छे तारी भावना!
तने जरूर अनुभूतिनो महान लाभ थशे.
‘अहो माता! मारा जेवा जीवोने अनुभूतिनो मार्ग बतावीने आप महान
उपकार करी रह्या छो. हुं महाभाग्यशाळी छुं के आपनी सेवा करवानो ने आपनी साथे
रहेवानो अवसर मने प्राप्त थयो छे. मारी तीर्थयात्रा खरेखर सफळ थई.