Atmadharma magazine - Ank 378
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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‘मने को ’ ने कुंदकुंद प्रभु केवा हशे? क््यां रहेता हशे? शुं करता हशे? मने
पोन्नूर गिरि पर ध्यान धरनारा, विदेहना यात्रिक केवा हशे? मने
सीमंधर देवना दर्शन करीने, संदेशो लावनार केवा हशे? मने
सार–समय केरी बंसरी बजावी, हैया डोलावनार केवा हशे? मने
परमागमनी अद्भुत प्रसादी, देनार संत ए केवा हशे? मने
दर्शन महत्ता ने चेतननी शुद्धता, विश्वे गजावनार केवा हशे? मने
निश्चय निहाळनार शासन शोभावनार, सुधाना सींचनार केवा हशे? मने
स्व–पर ज्ञानमां स्थापी सिद्धोने, मंगल करनार ए केवा हशे? मने
धून मचावी सर्वज्ञ पदनी, ए सर्वज्ञनंदन केवा हशे? मने
तीर्थंकर तुल्य आ भरतक्षेत्रमां धर्मप्रभावी केवा हशे? मने १०
पंच परमागम आप्यां शासनने अहो, ए श्रुतघर केवा हशे? मने ११
वीरप्रभुना मार्ग प्रकाशक वीतराग संत ए केवा हशे? मने १२