Atmadharma magazine - Ank 379
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २५०१ आत्मधर्म : ७ :
दुःखथी त्रासीने शांति माटे
धा नाखतो जिज्ञासु वेगपूर्वक
आनंदधाम तरफ दोडे छे.
(सम्यक्त्वजीवन–लेखमाळा : लेखांक–१३)
सम्यक्त्वने झंखतो जीव प्रथम एटलो विश्वास करे छे के
जगतमां सुखनुं धाम कोई होय तो ते मारुं चैतन्यपद ज
छे. आवा विश्वासना जोरे जेम–जेम तेनी लगनी वधती
जाय छे तेम तेम आनंदनुं धाम तेने पोतानी अंदर नजीक
ने नजीक देखातुं जाय छे...ने अंते जेम तरस्युं हरणुं
पाणीना सरोवर तरफ दोडे तेम तेनी परिणति वेगपूर्वक
आनंदमय स्वधाममां प्रवेशीने सम्यक्त्व वडे ते आनंदित
थाय छे. (सं.)
सम्यग्दर्शन थतां पहेलांं आत्मसन्मुख जीवनी रहेणी–करणी तथा विचारधारा
केवा प्रकारनी होय? तथा सम्यग्दर्शन थया पछी तेनी रहेणी–करणी अने विचारधारा
केवा प्रकारनी होय? ए जाणवानुं जिज्ञासुने माटे खूब ज उपयोगी अने जरूरी छे.
सम्यग्द्रष्टिना अंतरमां वहेता भेदज्ञानना भावोने बहु विरल जीवो ज ओळखे छे, पण
जे ओळखे छे ते न्याल थई जाय छे.
जेनी अंतरंग परिणति चैतन्यनी शांतिने झंखी रही छे, चोवीस कलाक सतत
जेने आत्मस्वरूपनी ज लगन छे, कषायोनी अशांतिथी जे अत्यंत थाक््यो छे, जेनुं
वैरागी हृदय भव–तन–भोगोथी पार एवा कोई परमतत्त्वने शोधी रह्युं छे,–ते माटे
सर्व परभावोथी दूर–......अतिदूर एवी निज–गूफामां प्रवेशवा तत्पर बन्युं छे, साची
शांतिनो मार्ग बतावनारां देव–शास्त्र–गुरु उपर जेने पूर्ण विश्वास छे, अने तेमनी
पासे जई, बीजी बधी अभिलाषा छोडी महान निजवैभवनी प्राप्ति माटे जेनो पोकार
छे,–आवी अंतरंग विचारधारावाळो जीव आत्मसन्मुखधारा वडे थोडा ज वखतमां