जगतमां सुखनुं धाम कोई होय तो ते मारुं चैतन्यपद ज
छे. आवा विश्वासना जोरे जेम–जेम तेनी लगनी वधती
जाय छे तेम तेम आनंदनुं धाम तेने पोतानी अंदर नजीक
ने नजीक देखातुं जाय छे...ने अंते जेम तरस्युं हरणुं
पाणीना सरोवर तरफ दोडे तेम तेनी परिणति वेगपूर्वक
आनंदमय स्वधाममां प्रवेशीने सम्यक्त्व वडे ते आनंदित
थाय छे. (सं.)
केवा प्रकारनी होय? ए जाणवानुं जिज्ञासुने माटे खूब ज उपयोगी अने जरूरी छे.
सम्यग्द्रष्टिना अंतरमां वहेता भेदज्ञानना भावोने बहु विरल जीवो ज ओळखे छे, पण
जे ओळखे छे ते न्याल थई जाय छे.
वैरागी हृदय भव–तन–भोगोथी पार एवा कोई परमतत्त्वने शोधी रह्युं छे,–ते माटे
सर्व परभावोथी दूर–......अतिदूर एवी निज–गूफामां प्रवेशवा तत्पर बन्युं छे, साची
शांतिनो मार्ग बतावनारां देव–शास्त्र–गुरु उपर जेने पूर्ण विश्वास छे, अने तेमनी
पासे जई, बीजी बधी अभिलाषा छोडी महान निजवैभवनी प्राप्ति माटे जेनो पोकार
छे,–आवी अंतरंग विचारधारावाळो जीव आत्मसन्मुखधारा वडे थोडा ज वखतमां