Atmadharma magazine - Ank 379
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: १० : आत्मधर्म : वैशाख : २५०१
स्वरूप जिनमुद्रा तेने ज मोक्षसुख कह्युं छे. जेम प्रवचनसारना पंचरत्नमां भावलिंगी
मुनिने ज मोक्षतत्त्व कह्युं छे, तेम अहीं रत्नत्रयनी आराधनारूप जिनमुद्रा ते मोक्ष–
सुखनुं कारण होवाथी, तेमां ज कार्यनो उपचार करीने तेने ज मोक्षसुख कह्युं छे.
जिनमुद्रा केवी छे? के भगवाने जेवी आराधी अने कही तेवी छे; सम्यग्दर्शन–ज्ञान–
चारित्रना आराधक, वीतरागताना पिंड मुनि चाल्या आवता होय–ए तो जाणे साक्षात्
मोक्षतत्त्व आव्युं! अहा, आवी मुनिदशारूप जिनमुद्रा जेने न रुचे तेने आराधनानो ज
प्रेम नथी. आवी जिनमुद्राधारक मुनिना साक्षात् दर्शन थतां मुमुक्षुजीवनुं हृदय
आराधना प्रत्येनी भक्तिथी ऊछळी जाय छे. अरे, स्वप्नमां पण जेने आवी मुनिदशा
प्रत्ये अणगमो आवे, के तेनी अरुचि थाय, ते जीव गहन भववनमां भटके छे, केमके
तेने आराधना प्रत्ये तीरस्कार छे. धर्मीने तो स्वप्नमां पण वीतरागी संत–धर्मात्मानुं
बहुमान आवे, स्वप्नमां पण मुनि वगेरे धर्मात्माना दर्शन थतां भक्तिथी तेना रोम
रोम उल्लसी जाय!
सम्यग्दर्शन सहितनी चारित्रदशा होय त्यां बहारमां पण दिगंबर द्रव्यलिंग
होय; आ रीते अंतरमां ने बहार वीतराग जिनमुद्रा धारण करनारा संतमुनिओ
स्वाधीन आत्मसुखने अनुभवे छे. आचार्यदेव पोते आवा स्वाधीन सुखने अनुभवे
छे. आवी जिनमुद्राधारक धर्मात्मा मुनिओना दर्शनथी जेने प्रमोद अने भक्ति नथी
आवता ते जीव आराधनाथी भ्रष्ट वर्ततो थको संसारमां ज रखडे छे. धर्मी जीव तो
आवा आराधकमुनिने जोतां प्रमोदित थाय के वाह! धन्य आपनी आराधना!! धन्य
आपनी चारित्रदशा!! धन्य आपनो अवतार!! साक्षात् मोक्षनुं साधन आप करी
रह्या छो.–आम प्रमोदथी धर्मीजीव रत्नत्रयनी आराधनानी भावना पुष्ट करे छे.
रत्नत्रयना आराधक भावलिंगी मुनिओ आ लोक के परलोक बंनेना
लोभरहित निरपेक्षवृत्तिथी अंतरमां चिदानंद परमतत्त्वना ध्यानमां मग्न होय छे, तेओ
वर्तमानमां ज मोक्षसुखमां महाली रह्या छे, ने अल्पकाळे पूर्ण मोक्षसुखने पामशे. जेना
अंतरमां लोभ रहे, आ लोकनी सगवडतानी आकांक्षा रहे, प्रतिकूळतानो भय रहे, के
परलोक संबंधी आकांक्षा रहे ते जीव परमात्मतत्त्वना ध्यानमां रही शकतो नथी. अरे,
मोक्षसुखनी ईच्छा ते पण लोभ छे, ते पण दोष अने आस्रव छे, ने तेटलो लोभ पण
मोक्षसुखने रोकनार छे. माटे भावलिंगी मुनिवरो तो निर्लोभ थईने परमात्मतत्त्वने
ध्यावे छे, तेमां परम आनंदरसनो ज प्रवाह वहे छे. नीचेनी भूमिकामां धर्मीने