थवानी ताकात छे; शरीरमां के रागमां एवुं सामर्थ्य नथी के केवळज्ञाननुं कर्ता थाय.
(२) कर्म:–शुद्ध अनंत शक्तिवाळा ज्ञानरूपे परिणमवाना स्वभावने लीधे आत्मा
पोते ज केवळज्ञानरूपे प्राप्त थतो होवाथी पोते ज कर्ता छे. केवळज्ञानरूप कार्यनो
अनुभव आत्मा पोते करे छे, पोते तेरूपे स्वयं थाय छे. जेम ‘ज्ञानरूपे परिणमवानो
स्वभाव’ कह्यो तेम ‘सुखरूपे परिणमवानो स्वभाव, सम्यक्त्वरूपे परिणमवानो
स्वभाव–एम सर्वे गुणोनी निर्मळपर्यायरूपे परिणमवानो आत्मानो स्वभाव छे, ते
स्वभावने लीधे स्वयंभू छकारकरूप थईने केवळज्ञानादि रूपे परिणमे छे.
साधकतम थईने केवळज्ञानरूप परिणमे छे. साधकतम कहेतां साधननुं अनन्यपणुं
बताव्युं छे; शुद्धोपयोगरूप परिणमतो आत्मा–ते ज एक उत्कृष्ट साधन छे ने बीजुं
साधन नथी एवा अर्थमां ‘साधकतम’ कहेल छे. अज्ञानी अंतरना स्वभावने
भूलीने बहारना साधनने ढूंढे छे ने मोहथी दुःखी थाय छे. भाई! साधन थवानी
ताकात तारा स्वभावमां छे–तेमां उपयोगने जोड, तो आत्मा पोते साधन थईने
केवळज्ञानरूपे प्रगट थशे. शरीर के शुभराग साधन थाय–ए तो वात ज नथी. मति–
श्रुतज्ञानमांय एवी ताकात नथी के केवळज्ञाननुं साधन थाय, त्यां शुभरागनी शी
वात?–ए तो विरुद्ध जात छे. ते समये आत्मा पोते ज केवळज्ञाननुं साधन थईने
केवळज्ञानरूपे परिणमे छे, एनाथी जुदुं एनुं साधन नथी. पर्याये ते समये पोताना
अनंतशक्तिवाळा स्वभावनुं अवलंबन लीधुं छे–तेमां ज साधन वगेरे छए कारक
समाई जाय छे.
ज आपे छे, तेथी आत्मा ज केवळज्ञाननुं संप्रदान छे. पोते ज स्वयं संप्रदान थईने
केवळज्ञानरूप थयो छे तेथी आत्मा स्वयंभू छे. अहो, आवो ‘स्वयंभू’ भगवान
आत्मा पोते छे, ते भूलीने बहारना साधनवडे पोताने ज्ञान के सुख थवानुं मानीने
बहारमां ढूंढे छे, ते मात्र मोह छे, व्यग्रता छे, दुःख छे, स्वयंभू स्वभाव परमसुखथी
भरेलो छे तेमां उपयोग जोडतां ज अतीन्द्रियसुख अनुभवाय छे. बीजुं कोई तेनुं
साधन छे ज नहीं.