ने पछी दिव्य–ध्वनिवडे अपूर्व आत्मशांति पामवानो जे
मार्ग जगतने बताव्यो, ते मार्ग संतोनी परंपरामां
आजेय आपणने अपूर्व शांति आपे छे–पण क््यारे? के
ते मार्गना सेवन वडे आत्माने ओळखीए त्यारे!
बतावीने वीरनाथभगवाने मोटो उपकार कर्यो छे.
प्रभुनो ते मार्ग आजेय जीवंत छे; बंधुओ! ते मार्गमां
आवो ने अपूर्व शांति पामो. (सं.)
ज्यां ‘अलब्ध–लाभ’ थयो एटले पूर्वे कदी जे नहोतो पाम्यो तेनी प्राप्ति थई, त्यां
धर्मीने एम थाय छे के अहो! मारो आवो ज्ञानानंदस्वरूप आत्मा छे, तेने में पूर्वे कदी
न जाण्यो...ने बहिरात्मबुद्धिथी अत्यार सुधी हुं रखड्यो. हवे मने मारा अपूर्व
आत्मस्वभावनुं भान थयुं. आ रीते अलब्ध आत्मानी प्राप्तिनो संतोष थयो के अहो!
मने अपूर्व लाभ मळ्यो, पूर्व मने कदी आवा आत्मानी प्राप्ति नहोती थई. पूर्वे हुं
आवा आत्माथी च्युत थईने बाह्यविषयोमां ज वर्त्यो–पण हवे आत्माना अतीन्द्रिय
आनंदनी प्राप्तिथी संतुष्ट थयो.