Atmadharma magazine - Ank 379
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: ३४ : आत्मधर्म : वैशाख : २५०१
एटले के विपरित मार्गे हवे ते जतो नथी; जिनमार्ग अनुसार नव तत्त्वनुं श्रद्धान करे
छे. जड अने चेतननुं भेदज्ञान करे छे, चैतन्यभाव अने रागभावनी भिन्नतानो ऊंडो
विचार करे छे; द्रव्यकर्म–भावकर्म–नोकर्मरहित एवा शुद्धचैतन्यस्वरूपे आत्माने लक्षमां
ल्ये छे; तेमां तेने शांति देखाती जाय छे एटले तेने आत्मानी ज धून लागी छे; ने बीजे
बधेथी उदासीनता वधती जाय छे; वारंवार आत्मानुं स्मरण चिंतन करीने परिणामने
शांत करतो जाय छे, देव–गुरुने देखतां तेमनी अतीन्द्रिय शांतिने लक्षगत करतो जाय
छे; शास्त्रमांथी पण शांतरसने ज घूंटतो जाय छे; आ रीते तेने देव–गुरु–शास्त्र तरफनो
उत्साह पण वधतो जाय छे ने तेमनामां वधु ने वधु ऊंडप देखाती जाय छे, आत्मरस
एवो मीठो लागे छे के संसारनुं महान प्रलोभन पण तेने आत्मरसथी छोडावी शकतुं
नथी. गमे तेवा प्रतिकूळ संयोग आवी पडे तोपण कषायनो रस वधवा दीधा वगर ते
समाधान करी ल्ये छे; संसारनां मिथ्या सुखो पाछळ हवे ते गांडो थतो नथी, अंदरथी
तेनो रस छूटी गयो छे; एटले तेने माटे तीव्र आरंभ–समारंभ के अनीति–अन्याय
पण ते करतो नथी. निवृत्तिपूर्वक तीर्थस्थानोमां के सत्संगमां रहीने आत्मसाधन
करवानुं तेने गमे छे, उपयोगने निर्विकल्प करवा ने आत्माने अनुभववा ते वधुने वधु
आत्मा तरफ वळे छे, विचारधाराने वधुने वधु सूक्ष्म करीने आत्माने परभावोथी जुदो
पाडे छे, अनेक प्रकारे आत्मानी सुंदरता ने गंभीरता लक्षमां ल्ये छे. अहो, मारुं
आत्मतत्त्व कोई अगाधगंभीर अद्भुत भावोथी भरेलुं छे. तेनो अनुभव करवामां
वच्चे कया परिणामो नडे छे?–ते संबंधी दंभ कर्या वगर पोताना परिणाम केवा छे ते
जाणे छे; ने विघ्न करनारा परिणामोने तोडीने स्वरूपमां पहोंची जाय छे. नवे तत्त्वनुं
स्वरूप समजीने तेमांथी सारभूत तत्त्वने ग्रहण करे छे, ए रीते स्वभावने ग्रहतो, ने
परभावोने पृथक् करतो–करतो ते जीव, अंते सर्व परभावोथी भिन्न ने निज
स्वभावोथी परिपूर्ण एवा आत्मतत्त्वने शोधीने तेनुं सम्यक्दर्शन करी ल्ये छे; तेना
मोक्षना दरवाजा खुली जाय छे.
सम्यग्दर्शन थया पछी–
अहो, आ आत्मपुरुषार्थी जीव पोताना स्वकार्यने साधवामां सफळ थयो छे, तेनुं
ज्ञान विकल्पथी छूटुं पडी गयुं, आत्मानुं साक्षात् दर्शन तेने थयुं.....पोताना सत्य
स्वरूपनुं ज्ञान थयुं....परिणाममां कषाय वगरनी अपूर्व शांति थई, प्रथम अपूर्व क्षणना
ते निर्विकल्प अनुभवकाळे शांतिना वेदनमां ते एवो लीन हतो के ‘मने सम्यक्त्व