Atmadharma magazine - Ank 379
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: ३८ : आत्मधर्म : वैशाख : २५०१
दवेसाहेबनुं कडक शिस्त एवुं के कोई तेमनी सामे एक हरफ पण उचारी न शके,
तेने बदले विद्यार्थीनो आवो हुमलो देखीने सौ स्तब्ध थई गया.....
‘हवे शुं थशे!! ’ सौने एक ज प्रश्न हतो. दवेसाहेब हमणां आने लात मारीने
काढी मुकशे के शुं?
–पण ना; एवुं कांई न बन्युं. सौए जोयुं के दवेसाहेब शांतिथी टेबल पासे
जईने ऊभा छे, ने रूमालवडे भीनी आंखो लूछी रह्या छे. थोडीवारमां, एकदम शांतिथी
तेमणे कह्युं: वहाला विद्यार्थीओ! में पण भणती वखते मारा गुरुप्रत्ये एकवार आवी
उद्धताई करी हती....त्यारे मारा साहेबे मारी भयंकर भूलनी शिक्षा करवाने बदले मने
हसते मोढे माफी आपी हती....ने त्यारथी ज मारी उन्नति थई हती. हुं पण मारा
वहाला विद्यार्थीनी भूल माफ करीश, ने आशा राखीश के ते पण सुधरी जशे ने मारी
स्कूलनो झळकतो सीतारो बनशे.–बस, आम कहीने वर्ग छोडी मुक््यो, ने पोते पोताना
घेर गया.
स्कूल छुटी.....विद्यार्थीओ टोळे मळीने आजना प्रसंगनी वात करता हता. पण
पेलो विद्यार्थी तो कोई साथे बोल्या वगर सुनमुन एकलो चाल्यो जतो हतो. सौने एम
हतुं के हजी एने बदलो लीधा वगर चेन नहीं पडे.
अने, ए विद्यार्थी दवेसाहेबना घर तरफ जई रह्यो हतो. तेने घरे आवेलो
देखीने दवेसाहेब आश्चर्यथी जोई रह्या...हजी बपोरनुं वेर अधूरुं हशे ते पूरो बदलो
लेवा आव्यो लागे छे! –एम धारी दवेसाहेबे तेनी सामे गाल धर्यो ने कह्युं–ले, तारे
बीजो लाफो मारवो होय–तो खुशीथी मार!
अरे, पण दवेसाहेबना ए शब्दो सांभळतां तो पेलो विद्यार्थी ध्रुसके–ध्रुसके रोई
पड्यो....एनुं हैयुं भराई आव्युं....आंखमांथी आंसुनो धोध वहेवा लाग्यो: ए कांई
वेरनो बदलो लेवा नहोतो आव्यो; ए तो खरा पश्चात्तापथी भूलनी माफी मागवा
आव्यो हतो. ते साहेबना पगे पडी गयो ने कह्युं साहेब, मने माफ करो; हुं गुनेगार छुं.
जे शिक्षा करवी होय ते करो.
साहेब साची परिस्थिति समजी गया...पोताना विद्यार्थीनुं आवुं परिवर्तन
देखीने तेमनुं हैयुं हेतथी ऊछळवा लाग्युं; तेमनी आंखमां पण आंसु आव्या....ने
वात्सल्यथी तेनी पीठ पर हाथ फेरवीने कह्युं–बेटा, तुं तो मारा करतांय सवायो