Atmadharma magazine - Ank 379
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २५०१ आत्मधर्म : ४१ :
मंगल जन्मोत्सव:
वैशाख सुद बीज: अमदावाद
गुजरातनुं पाटनगर उत्सुकताथी जेनी
राह जोतुं हतुं, ने जे मंगल उत्सवमां भाग लेवा
हजारो मुमुक्षुओ आवी पहोंच्या हता....ते वैशाख
सुद बीज आवी ने मंगल वधाई लावी.
हजी सवार पडी न हती...हजी तो मांड
मधरात वीती हती त्यां तो मुमुक्षु भाई–बहेनो
जागीजागीने जिनमंदिरे पहोंची गया...अहा,
आत्महितना हेतुरूप देव–गुरुनो ज्यां मंगल
उत्सव होय त्यां क््यो मुमुक्षु ऊंघे? मुमुक्षुने
जगाडनारा गुरुनो उत्सव उजववा मुमुक्षुओ
जाग्या. अमदावाद नगरी तो हजी ऊंघती हती, पण रस्ता पर हजारो यात्रिकोनो
आनंदमय कोलाहल सांभळीने कोई कोई नागरीको झबकीने जागता ने ‘आ शुं छे’ ते
आश्चर्यथी जोता.
जिनमंदिरेथी वीरनाथना जयजयकार करती मंगल–प्रभातफेरी आम्रफळना
ढगले ढगलानी वच्चे थईने महावीर–मंडपमां आवी पहोंची. (छ वर्ष पहेलांं ज्यां
नेमप्रभुना पंचकल्याणक थयेला ते ज भूमिमां वीरनाथनो संदेश सांभळवा हजारो
मुमुक्षुओ उभराता हता.
गुरुदेव पण जिनमंदिरोमां भगवान आदिनाथ तथा भगवान सीमंधरादि
जिनेन्द्रदेवना दर्शन करीने महावीर–मंडपमां आवी पहोंच्या; हजारो भव्योना हर्षनाद
वच्चे ८६ सुंदर कमानोथी शोभता मार्ग वच्चेथी गुरुदेव पसार थया त्यारे जाणे मोक्षना
मंगल मार्गे कोई मुक्तिदूत चाल्यो जतो होय! ने ए सुंदर मार्गने देखीने आपणे पण
तेमनी साथे ज ए मार्गमां जई रह्या होईए! एवो हर्ष थतो हतो.
–पछी हजारो जिज्ञासु भक्तजनोए भक्तिभावपूर्वक गुरुदेवने अभिनंद्या. आ
प्रसंगे मंडपना दरवाजे हाथी झूलता हता, ने वातावरणमां अनेरो उमंग हतो. पछी
समयसार उपर स्वानुभूतिना महिमासूचक सुंदर प्रवचन थयुं. अने ८६ नी रकमोनुं फंड