Atmadharma magazine - Ank 379
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २५०१ आत्मधर्म : ४३ :
भगवान महावीरनी ओळखाणथी
आत्मानी ओळखाण
अमदावाद शहेरमां गुरुदेवनी जन्मजयंती उजवाई; ते वखते
प्रवचनमां वीरप्रभु प्रत्येनी भक्तिपूर्वक वीरमार्गनो जे अमृतप्रवाह
गुरुदेवे वहेवडाव्यो तेमांथी थोडाक अमृतबिंदु झीलीने अहीं आप्या छे.
–तेनुं जे पान करशे ते अमर थशे. (–सं.)

अत्यारे भगवान महावीरना निर्वाणनो अढीहजारवर्षीय महोत्सव चाले छे,
तेमां ते भगवानना स्वरूपनी ओळखाणथी सम्यक्त्व थाय छे–ते वात आ
प्रवचनसारनी ८० मी गाथामां आवी छे–
जे जाणतो अर्हंतने गुण–द्रव्य ने पर्ययपणे,
ते जीव जाणे आत्मने तसु मोह पामे लय खरे.
चेतन–द्रव्य, चैतन्य–गुण, चैतन्य–पर्याय एमां क्यांय राग न आव्यो, एवा
शुद्ध चैतन्यस्वरूपे भगवान अरिहंतदेवना आत्माने जे ओळखे छे, ते पोताना
आत्मानुं पण रागथी भिन्न चैतन्यस्वरूप जाणीने सम्यक्त्वने पामे छे, ने जन्म–
मरणना दुःखथी मुक्त थाय छे.
जेवो अरिहंतदेवनो आत्मा, जेवो भगवान महावीरनो आत्मा, तेवो ज मारो
आत्मा पण चेतनस्वभावमय छे; एम जाणीने चेतनस्वभावमां ज पोताना गुण–
पर्यायने समावीने अनुभव करतो ते जीव सम्यग्दर्शन पामे छे ने तेना मोहनो नाश
थई जाय छे....चैतन्यनी परम शांतिनुं तेने वेदन थाय छे.
(प्रवचन–मंडपनी बहार जुओ तो, वैशाखनो धोमधखतो आताप जीवोने चेन
पडवा देतो नथी,–पण प्रवचन–मंडपमां तो चैतन्यरसनो एवो शीतळ फूवारो ऊछळी
रह्यो छे के सूर्यनी गरमी तो शुं!–पण अंदर मुमुक्षुने मोहनो आताप पण शांत थईने
चैतन्यनी कोई अनेरी ठंडक अनुभवाय छे. आप आ अमदावादनुं प्रवचन वांची रह्या
छो.)
आत्मानी ओळखाण थतां ज अंदर अतीन्द्रिय आनंदनो स्वाद आवे छे. ते
आत्मा केवो छे तेनुं आ अलौकिक वर्णन कुंदकुंदस्वामीए कर्युं छे.