Atmadharma magazine - Ank 379
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: ४४ : आत्मधर्म : वैशाख : २५०१
जेम भगवान अरिहंतनो एटले के भगवान महावीरनो आत्मा त्रिकाळ
चेतनस्वरूप छे, तेम मारो आत्मा पण त्रिकाळ चेतनरूप छे.
जेम सर्वज्ञ–अरिहंत–महावीरना बधा गुणो चैतन्यरूप छे, तेम मारा आत्माना
पण बधा गुणो चैतन्यरूप छे.
हवे पर्यायमां, अरिहंतदेवनी पर्याय एकला चैतन्यपरिणमनरूप छे, रागादि
कोई परभावो तेमां नथी. मारी पर्यायमां जोतां चेतनभाव अने रागभाव बंने देखाय
छे, –पण अरिहंतदेव साथे सरखावतां ते ज्ञान अने रागनुं पृथक्करण थई जाय छे,
तेमांथी चेतनअंशोने तो मारा चैतन्यमां समावीने अभेद करुं छुं, ने रागादिभावोने
मारा चैतन्यस्वभावथी भिन्न करुं छुं–आ रीते अरिहंतना आत्माने आदर्शरूप राखीने,
पोतामां रागथी भिन्न चैतन्यस्वरूपे ज गुण–पर्यायोने चेतनद्रव्यमां अभेद करीने
अनुभवमां ल्ये छे–के ते क्षणे ज तेना मोहनो क्षय थईने ते जीव अपूर्व सम्यग्दर्शनने
पामे छे. –आ महावीरनो मार्ग छे; आ ज मोक्षनो साचो उत्सव छे.
बापु! आ मार्ग सत् छे; तारा हितनो मार्ग तारा अंतरमां ज सत् छे, क््यांय
बहारमां नथी. तारा आत्मानी अनुभूति तने केम थाय! तेनी आ वात छे. संतो पोते
आवी अनुभूति करीने तेनी रीत बतावे छे. तने अनुभूतिनो अवसर मळ्‌यो छे, तो
हवे तुं प्रमाद करीने ते गुमावी दईश मा.
अरे जीव! आपणा सर्वज्ञदेवना आत्माने साचा स्वरूपे तुं ओळखीश तो
तारामांय तेमना जेवा ज कोई अपूर्व निधान भर्या छे ते तने देखाशे. तारा चेतन–
स्वभाव साथे तें पर्यायने कदी अभेद करीने अनुभव कर्यो नथी, तें राग साथे ज
पर्यायने अभेद करीने अनुभव कर्यो छे, एटले राग वगरना सर्वज्ञना पण साचा
स्वरूपने तें कदी ओळख्युं नथी. पण हवे तुं जैनमार्गमां आव्यो, अरिहंतदेवनो पंथ
महाभाग्यथी तने मळ्‌यो, तो अरिहंतदेवने–महावीरभगवानने चेतनमय द्रव्य–गुण–
पर्यायथी ओळख तो खरो...तेनी ओळखाणथी तारा द्रव्य–गुण–पर्याय बधुंय तने
चेतनमय देखाशे, ने रागथी भिन्न परमार्थे अरिहंत जेवो ज तारो आत्मा तने
अनुभवमां आवशे. ए सम्यग्दर्शन छे, तेमां अपूर्व शांति छे, ते भगवाननो मार्ग छे,
ने ते ज आत्मानुं साचुं जीवन छे.
अनादिथी मिथ्याभावे तें तारा आत्मानी हिंसा करी, हवे ते हिंसाथी आत्माने