Atmadharma magazine - Ank 379
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २५०१ आत्मधर्म : ४५ :
बचाववा, ने साचुं सुखी जीवन जीववा माटे तुं तारा आत्माने सर्वज्ञ साथे सरखावीने
ओळख. तने आत्मानी अपूर्व स्वानुभूति थशे.
अहो, स्वानुभूतिना अपूर्व वेदनमां द्रव्य–गुण–पर्यायना भेद पण नथी रहेता;
चेतनना गुण–पर्यायो (–के जेओ चेतनभावरूप ज छे तेओ) द्रव्यस्वभावमां अंतर्लीन
अभेद थईने एकाकार आत्मा अनुभवाय छे. –आवो अनुभव ते ज मोहने जीतवानो
ने मोक्षने पामवानो उपाय छे. धर्मी कहे छे के अहो प्रभो! अहो वीरनाथ! आपना
मार्गमां आवीने मोहनी सेनाने जीतवानो उपाय अमे मेळवी लीधो छे....आपना जेवा
ज आत्मानी स्वानुभूतिवडे मोहने नष्ट करी नांख्यो छे. अहो, भगवान! आपना
उपकारनी शी वात! जे मार्गे आप मोक्ष पाम्या ते ज मार्ग अमने बताव्यो, ने ते ज
मार्गे अमे आनंदथी आवी रह्या छीए.
अहो! अरिहंत भगवाननो मार्ग ए तो आत्मसन्मुखतानो कोई अपूर्व
अलौकिक मार्ग छे, जेने अंगीकार करतां मोहनो नाश थईने सम्यक्त्व थया वगर रहे
नहीं. अरिहंतनुं खरूं स्वरूप ओळखनार जीव एकला पर सामे जोईने नथी अटकतो,
(–केमके अरिहंतो पण पर सामे जोईने न अटक्या त्यारे तो अरिहंत थया; एटले)
अरिहंतने ओळखनार जीव राग अने ज्ञाननी भिन्नताने समजीने, पोते पोताना
ज्ञानस्वभाव तरफ वळे छे ने रागादिथी छूटो पडी जाय छे; आ रीते अंतरमां
एकाग्रतावडे मोहनो नाश करीने ते मोक्षमार्गने खोली नांखे छे.–ए वात ८० मी
गाथामां बतावी.
जेम क्षायिकभाव थतां तेनी खबर पडे छे, तेवी ज स्पष्ट खबर क्षायोपशमिक
समकितीने पण पडे छे; अहो, मने मारो चैतन्य–हीरो प्राप्त थयो छे; जिनोपदेशवडे
आत्माने जाणीने मोहने में नष्ट कर्यो छे. आ रीते संसारमां दुर्लभ एवा चैतन्य–
चिंतामणिने पामीने हुं कृतकृत्य थयो छुं.–छतां हजी शुद्धोपयोगी–चारित्रवडे राग–द्वेषनो
पण क्षय करीने वीतरागतावडे सर्वथा शुद्धात्मा (केवळज्ञान) प्राप्त करवा माटे मारे
उद्यमशील रहेवुं जरूरी छे. आम दर्शनमोह उपरांत चारित्रमोहने पण हणीने केवळज्ञान
प्रगट करवा मांगे छे.
एकला सम्यग्दर्शनवडे केवळज्ञान के मोक्ष पामी जवाय–एम नथी; सम्यग्दर्शन
पछी पण जेटला राग–द्वेष छे तेटलुं दुःख छे. ते राग–द्वेषने पण छोडीने जीव ज्यारे
शुद्धोपयोगरूप परिणमे छे त्यारे ज ते केवळज्ञान अने मोक्ष पामे छे.–आ ज मोहना