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ओळख. तने आत्मानी अपूर्व स्वानुभूति थशे.
अभेद थईने एकाकार आत्मा अनुभवाय छे. –आवो अनुभव ते ज मोहने जीतवानो
ने मोक्षने पामवानो उपाय छे. धर्मी कहे छे के अहो प्रभो! अहो वीरनाथ! आपना
मार्गमां आवीने मोहनी सेनाने जीतवानो उपाय अमे मेळवी लीधो छे....आपना जेवा
ज आत्मानी स्वानुभूतिवडे मोहने नष्ट करी नांख्यो छे. अहो, भगवान! आपना
उपकारनी शी वात! जे मार्गे आप मोक्ष पाम्या ते ज मार्ग अमने बताव्यो, ने ते ज
मार्गे अमे आनंदथी आवी रह्या छीए.
नहीं. अरिहंतनुं खरूं स्वरूप ओळखनार जीव एकला पर सामे जोईने नथी अटकतो,
(–केमके अरिहंतो पण पर सामे जोईने न अटक्या त्यारे तो अरिहंत थया; एटले)
अरिहंतने ओळखनार जीव राग अने ज्ञाननी भिन्नताने समजीने, पोते पोताना
ज्ञानस्वभाव तरफ वळे छे ने रागादिथी छूटो पडी जाय छे; आ रीते अंतरमां
एकाग्रतावडे मोहनो नाश करीने ते मोक्षमार्गने खोली नांखे छे.–ए वात ८० मी
गाथामां बतावी.
आत्माने जाणीने मोहने में नष्ट कर्यो छे. आ रीते संसारमां दुर्लभ एवा चैतन्य–
चिंतामणिने पामीने हुं कृतकृत्य थयो छुं.–छतां हजी शुद्धोपयोगी–चारित्रवडे राग–द्वेषनो
पण क्षय करीने वीतरागतावडे सर्वथा शुद्धात्मा (केवळज्ञान) प्राप्त करवा माटे मारे
उद्यमशील रहेवुं जरूरी छे. आम दर्शनमोह उपरांत चारित्रमोहने पण हणीने केवळज्ञान
प्रगट करवा मांगे छे.
शुद्धोपयोगरूप परिणमे छे त्यारे ज ते केवळज्ञान अने मोक्ष पामे छे.–आ ज मोहना