Atmadharma magazine - Ank 379
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: ४६ : आत्मधर्म : वैशाख : २५०१
क्षयनी अने मोक्षनी प्राप्तिनी रीत छे.–आवो मार्ग बतावीने आचार्यदेव तेमां
सर्वे अरिहंतोनी साक्षी आपे छे–
अर्हंत सौ कर्मोतणो करी नाश ए ज विधि वडे,
८२.
मोक्षने माटे बधोय राग छोडवा जेवो छे,–पछी अशुभ हो के शुभ, ते
राग मोक्षने रोकनार छे. मुनिराज कहे छे के प्रमादचोर छे तेना नाश माटे हुं
कटिबद्ध थयो छुं. जुओ, मुनिराजने अशुभराग तो नथी, ने शुभराग छे तेने
पण प्रमादचोर समजीने तेनो नाश करवा माटे, शुद्धोपयोगमां प्रयत्नशील छे.
सम्यग्दर्शन अने चारित्रदशा उपरांत शुद्धोपयोगनी पूर्णतावडे वीतरागतानी ने
केवळज्ञाननी भावना भावे छे. समस्त मोहना क्षयवडे मोक्ष पमाय छे, कषायनो
कोई कण राखीने मोक्ष पमातो नथी.
जेणे पोतानुं आनंदधाम जोयुं छे एवा साधकना हृदय बहु गंभीर होय
छे. अनंतकाळमां जे अनंता तीर्थंकरो थया ते बधायना भावनो निर्णय साधकना
स्वसंवेदनज्ञानमां समाई गयो छे. अहो, स्वसंवेदनज्ञानमां निर्णयनुं केटलुं जोर
छे! ते बाह्यद्रष्टिथी ख्यालमां आवे तेवुं नथी.
स्वानुभूतिना बळे मुक्तिनो मार्ग जाणीने धर्मात्मा–साधक कहे छे के
जेटला अरिहन्तभगवंतो मोक्ष पाम्या छे तेओ बधाय आवा ज उपायथी मोहनो
नाश करीने मोक्ष पाम्या छे, ने आवो ज उपदेश तेमणे कर्यो छे.–मोक्ष माटे आ
ज एक मार्ग छे, बीजो मार्ग नथी.–आवा मार्गनो स्वानुभूतिना बळे निश्चय
करीने हुं ते मार्गे जाउं छुं.–अहो, ते तीर्थंकरोने अने तेमना मार्गने नमस्कार हो.
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