प्रत्यक्ष करीने प्रमाण करजो.
मोक्षने माटे तेजीलो एवो मुमुक्षु ते तो संतोना ईसाराथी (थोडाक उपदेशथी) ज
चैतन्यनुं स्वरूप समजीने स्वानुभव करी ल्ये छे; स्वानुभवमां आत्माना आनंदनी
लब्धि प्रगटे छे तेनी शी वात! आत्मानी ते लब्धि पासे जगतना बीजा कोई वैभवनी
किंमत नथी.
आवी अनुभूतिनी ताकातनी शी वात! आवी अनुभूतिनो मंगल अवसर प्रभु
महावीरना शासनमां ज छे. महावीर भगवानना शासनने कुंदकुंदस्वामीए जीवंत राख्युं
छे. अहो, मंगळ श्लोकमां महावीर भगवान अने गौतमगणधरनी साथे ज
कुंदकुंदस्वामीनुं स्थान छे; (मंगलं कुंदकुंदार्यो) तेमणे आ समयसारमां मंत्रोवडे आत्माने
जगाडयो छे: भाई! जाग रे जाग! तारी चैतन्यसत्ताने अनुभूतिमां ले...अत्यारे नहि
जागे तो तुं क््यारे जागीश?
श्रोताओने चैतन्यबंसरीना नादे डोलावी रह्या छे. गुजरातनो यात्रासंघ पण
वीरप्रभुना धर्मचक्र सहित आवी पहोंच्यो छे. त्रणमास पहेलांं अमदावादथी उपडेलुं
धर्मचक्र, हजार यात्रिक साथे भारतमां घणे स्थळे विहार करीने आजे पुन: अमदावाद
आव्युं छे, ने यात्रिको उत्सवमां आनंदथी भाग लई रह्या छे.)