Atmadharma magazine - Ank 379
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २५०१ आत्मधर्म : ५ :
धर्मचक्रमां ज्ञान–आनंद वगेरे अनंत शक्तिओ एक साथे
परिणमती तने अनुभवमां आवशे.
७६. आत्माना छ कारकोनी स्वाधीनता उपरनां अद्भुत प्रवचनोमांथी
गूंथेली आ ७२ पुष्पोनी मंगलमाळा जे जीव पहेरशे–एटले के
अंतरमां परिणमावशे–ते जीव चैतन्यनुं चक्रवर्तीपद पामशे.
७७. अरेरे जीव! हवे तारे आ दुःखथी छूटवुं ज छे,–तो वार शुं
लगाडवी! आ क्षणे ज छूटी जा ने! आनंद तो तारामां हाजर ज
छे–तेमां आवी जा ने!
७८. मुमुक्षुने दरेक प्रसंगे पोताने आत्मिकभावनानुं घोलन थाय, ने
चेतनरस वधतो जाय–ते महत्त्वनुं छे. आत्मार्थी जीव बधाय
प्रसंगोने पोताना चेतनरसनी वृद्धिनुं ज कारण बनावे छे.
७९. सम्मेदशिखर वगेरे तीर्थधामोनी यात्रा, के जिनेन्द्रदेवना
पंचकल्याणकना दर्शन–ए बधा प्रसंगे मुमुक्षुने आत्मकल्याणनी ने
आत्माना अद्भुत महिमानी उत्तम भावनाओ जागे छे; नवी–
नवी भावनाओ घूंटतो–घूंटतो ते पोताना आत्माने
वीतरागमार्गमां आगळ ने आगळ लई जाय छे.
८०. बहारमां सुनकार वातावरण होय, चारे बाजु उदासी छवाई गई
होय एवा प्रसंगे धर्मीने मुनिओनो सहवास याद आवे छे: जाणे
मुनिओना वासमां रहेता होईए–एम परम वैराग्यरूप
आत्मभावनाओ जागे छे.
८१. साधक जीवनुं चित्त सदाय सर्वज्ञभगवंतो साथे केलि करतुं होय छे.
एनी आत्मसाधनाना अतीन्द्रिय–तार सर्वज्ञस्वभाव साथे
जोडायेला छे,–ते कदी तूटता नथी.
८२. एकत्व आत्मानो परम गंभीर महिमा जाणी, तेनी ऊंडी
भावनामां ऊतरीने आत्मअनुभूति सुधी पहोंचवुं–ते वीरनाथनो
मार्ग छे; ने जेणे एम कर्युं ते जीव पंचपरमेष्ठीनो साधर्मी थयो.
८३. वीतरागरसमां झूलता पंचपरमेष्ठी भगवंतोने नमस्कार! अहो
पंचपरमेष्ठीना प्रसादथी प्राप्त सुंदर चैतन्यतत्त्व केवुं शोभी रह्युं छे!!
८४. दुनिया दुनियानी रीते चाली रही छे; वैराग्य जगाडे छे; चैतन्यनी
अद्भुतता वगर मुमुक्षुने बीजे क््यांय चेन पडे तेवुं नथी.