: ८ : आत्मधर्म : जेठ : २५०१
• माता से प्यार •
(जिनवाणी स्तवन)
मुझको अपने आगमकी वाणीसे अनुपम प्यार है,
ईस वाणीको जन्म दिया था, त्रिशलानन्दन ‘वीर’ ने,
ईस वाणीकी महिमा गाई, कुंद कुंद आचार्यने.
ईस आगमके आगे मस्तक झुकता बारंबार है,
मुझको अपने आगमकी वाणीसे अनुपम प्यार है.
ईस वाणीकी अनुपम गाथा, गाई ‘अमृतचंद्र’ने;
ईस वाणीको धारो भैया, चल दो समयसारमें.
सीमंधरकी दिव्यध्वनिकी छाई ईसमें बहार है;
मुझको अपने आगमकी वाणीसे अनुपम प्यार है.
अपने अपने अंदर देखो, निज आतम भगवान है,
ईस वाणीसे अनुभव करलो, हो जाये कल्याण है.
ईस अनुभवको पाओ हर क्षण चेतन–चमत्कार है;
मुझको अपने आगमकी वाणीसे अनुपम प्यार है.
[संतोषकुमार जैन, बीना]
आपना घरमां निधान
आपना घरमां उत्तम धर्मसाहित्य अने ‘आत्मधर्म’ वसावो.
ते साहित्य आपना वंश–परिवारने माटे एकवार उत्तम निधान थई पडशे.
सोना–झवेरात करतांय उत्तम–वीतरागी साहित्यवडे आपनुं घर वधु शोभी उठशे.
वार्षिक लवाजम रूा. ६/– : आत्मधर्म कार्यालय, सोनगढ ()
* सम्यग्दर्शन पुस्तक छठ्ठुं नवीन प्रकाशन किंमत रूा. त्रण
* पंच परमागमनी प्रसादी नवीन प्रकाशन किंमत रूा. अढी