Atmadharma magazine - Ank 380
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ : २५०१ आत्मधर्म : ११ :
२१९. काळ, पवन, सूर्य अने चंद्र ए चारे एकठा रह्या छे. हे जोगी! हुं तने पूछुं छुं के
तेमांथी पहेलांं कोनो विनाश थशे?
२२०. चंद्र पोषण करे छे, सूर्य प्रज्वलित करे छे, पवन हीलोळा खवडावे छे, अने काळ
सात राजुना अंधकारने पीलीने कर्मने खाई जाय छे.
२२१. मुख अने नासिकानी मध्यमां जे सदा प्राणोनो संचार करे छे, अने जे सदा
आकाशमां विचरे छे ते जीव छे, तेनाथी आत्मा जीवे छे. (अथवा जे मुख अने
नासिकानी वच्चे प्राणवायुनो संचार करे छे अने आकाशमां सदा विचरण करे छे
ते प्राणवायु वडे संसारीजीवो जीवे छे.)
२२२. जे जीव आपदाथी मूर्छित थयेलो छे ते तो पाणीनी एक अंजलि छांटवाथी पण
जीवंत थई जाय छे; पण जे गतजीव छे–मृत्यु पाम्यो छे तेने तो हजारो घडा
पाणी रेडवाथी पण शुं? (–तेम जे जीवमां मुमुक्षुपणुं छे ते तो थोडाक उपदेश
वडे पण जागृत थई जाय छे, पण जेनामां मुमुक्षुपणुं नथी तेने तो हजारो
शास्त्रोनो उपदेश पण निष्फळ छे.)
ईति प्राभृत–दोहा समाप्त
[श्री योगीन्दुदेवरचित, (अथवा तो श्री मुनि–रामसिंहरचित) अपभ्रंश–
भाषाकाव्य ‘पाहुड दोहा’ ना २२२ दोहराओनो हिंदी अनुवाद स्व. प्रोफेसर हीरालाल
जैने करेल; तेना उपरथी, संशोधनपूर्वक आ गुजराती अनुवाद करेल छे. आगामी
अंकथी कोई बीजुं शास्त्र शरू करीशुं. –ब्र. ह. जैन
]
।। जैन जयतु शासनम्।।
जन्मीने शुं कर्युं?
भाई! आ तो सर्वज्ञनो निर्ग्रंथमार्ग छे. जो तुं स्वानुभव वडे मिथ्यात्वनी
गांठ न तोड तो निर्ग्रंथमार्गमां कई रीते आव्यो? जन्म–मरणनी गांठने जो न तोडी
तो जैनकुळमां जन्मीने तें शुं कर्युं? भाई, आवो अवसर मळ्‌यो तो एवो उद्यम कर के
जेथी आ जन्म–मरणनी गांठ तूटे ने अल्पकाळमां मुक्ति थाय. तने पोताने एवो
संतोष थाय के जैनकुळमां जन्मीने आत्माना हित माटे करवा जेवुं काम में करी लीधुं
छे...हुं कृतकृत्य छुं.