भिन्न लक्षमां लईने पोताना परिणामने वारंवार आत्मसन्मुख वाळवा प्रयत्न करे छे.
आम सम्यग्दर्शन पामवा माटे ते मुमुक्षुनी रहेणी–करणी तथा विचारधारा सतत एक
आत्मवस्तु तरफ ज केन्द्रित थवा मांडे छे; एटले तेनी रहेणी–करणी बीजा जीवो करतां
जुदी जातनी होय छे. तेने आत्मा सिवाय बीजे बधेय निरसता लागे छे; तेने तो बस
एक आत्मसन्मुख ज थवानुं गमे छे, तेना परिणाममां एक प्रकारनो फेरफार थई जाय
छे; ते भगवानना दर्शन–पूजन, स्वाध्याय–चिंतन, मुनिसेवा–दान वगेरे कार्योमां प्रवर्ते
छे, पण तेमांय आत्मा केम समजाय–ते ध्येय मुख्य राखे छे, एटले सतत आत्मजागृति
वडे ते तरफ ते आगळ वधे छे. कोई कोई वार आत्मामां नवीन भावोनी स्फुरणा थतां
तेने अंतरनो उमळको ऊछळी जाय छे, तेमांथी चैतन्य–चिनगारी झबकी ऊठे छे.
अभिलाषी राजाने ओळखीने श्रद्धापूर्वक तेनी सेवा करे छे तेम मुमुक्षुए ज्ञानस्वरूप
आत्माने ओळखीने श्रद्धापूर्वक सर्व उद्यमथी तेनुं सेवन करवुं. –एना वडे आत्मा जरूर
सधाय छे.
आत्मखुमारीने ज्ञानी ज जाणे छे, जेने एनो स्वानुभव थाय तेने ज तेनी खबर पडे.
बाकी तो वाणीथी, बाह्यचिह्नोथी के रागथी तेनी ओळखाण थती नथी. ज्ञानीनी
स्वानुभूतिना पंथ जगतथी न्यारा छे, एनी गंभीरता तो एना अंतरमां ज समाय छे.
ते एकलो–एकलो अंतरमां आनंद करतो–करतो मोक्षपंथे जई रह्यो छे; तेने जगतनी
दरकार रहेती नथी, धर्मना प्रसंगे के धर्मात्माना संगे तेने अनेरो उल्लास आवे छे
जिनमार्गना प्रतापे मने मारुं स्वरूप प्राप्त थयुं, आत्मामां अपूर्व भावो जाग्या; हवे आ
स्वरूपने पूर्ण प्रगट करीने अल्पकाळमां ज हुं परमात्मा थईश, ने आ संसारचक्रथी
छूटीने मोक्षपुरीमां जईश अने सदाने माटे सिद्धालयमां अनंत सिद्धोनी साथे
बिराजीश! वाह..धन्य ए दशा! तेनो मंगलप्रारंभ थई चुक््यो छे!