Atmadharma magazine - Ank 380
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: १४ : आत्मधर्म : जेठ : २५०१
अफर मुमुक्षु दशा
–ते प्रगट करो ने महावीरना मार्गमां आवी जाओ.
[सम्यक्त्व–जीवन लेखमाळा : लेखांक–१६]
अहा, मुमुक्षुनी विचारधारा एवा कोई अपूर्व भावे ऊपडी
छे के तेमां रागनो रस तूटतो जाय छे. पूर्वे ११ अंग भण्यो ने ते
निष्फळ गयुं तेना करतां आनुं ज्ञान कोईक जुदी जातनुं काम करे छे,
ने आ ज्ञानना संस्कार निष्फळ जवाना नथी; ते तो रागथी जुदुं
पडीने चैतन्यनुं स्वसंवेदन करशे ज; –अने ते पण अल्पकाळमां ज!
वाह, आ मुमुक्षुदशा पण धन्य छे! ते एवी अफर छे के आगळ
वधीने सम्यक्त्व लेशे ज, साधर्मीओ! वीरनिर्वाणना आ २५००
वर्षीय महान उत्सवमां आवी मंगलमय ज्ञानदशा शीघ्र प्रगट करो
ने महावीरप्रभुना मार्गमां आवी जाओ. (ब्र. ह. जैन)

सम्यक्त्वसन्मुख जीवनी भावना एवी उत्कृष्ट होय छे के मारे ज्ञानी गुरु पासे
जवुं छे, मारे एवा संतोना धाममां रहेवुं छे के ज्यां मने मारा आत्मानुं ज्ञान थाय, ने
हुं भवदुःखथी छूटुं. –आम पोताना हित माटे आत्मा विषे नवुं नवुं जाणवानी उत्कंठा
रहे छे. अने गुरुनो उपदेश झीलतां तेने अंतर्विचारनां द्वार खुली जाय छे. तेने ख्याल
आवे छे के आत्मअनुभूति माटे मारे हवे मारा अंतरमां शुं करवानुं छे! आवुं लक्ष
थया पछी तो अनुभूति माटे ते एवो झंखतो होय छे के जेवो खेडूत वरसाद माटे झंखे,
ने बाळक पोतानी वहाली माने झंखे. आवी झंखनाने लीधे तेना विचार–विवेक वधता
जाय, आत्मानो रस वधतो जाय, ने आत्मामां ऊंडो....ऊंडो ऊतरतो जाय. बस, हवे
हमणां आत्मानुं सम्यग्दर्शन पामुं–ए ज काम मारे करवानुं छे. आवी तेनी विचारधारा
होय छे.