: जेठ : २५०१ आत्मधर्म : १५ :
–तेने भेदज्ञानना विचारना बळथी अंतरमां शांति आवती जाय छे,–के जे शांति
रागमांथी आवेली नथी, अंतरना कोईक ऊंडाणमांथी आवेली छे.–आम पोताना
वेदनथी तेने अंतरनो मार्ग ऊघडतो जाय छे; ते मार्ग जेम जेम वधुने वधु स्पष्ट थतो
जाय छे तेम तेम तेनो उत्साह पण वधतो जाय छे.–हवे तेने मार्गमां सन्देह नथी पडतो,
के पंथ अजाण्यो नथी लागतो.
अने पछी तो एक एवी क्षण आवे छे के आत्मा कषायोथी छूटीने चैतन्यना
परम गंभीर शांतरसमां ठरी जाय छे...पोतानुं अत्यंत सुंदर महान अस्तित्व
आखेआखुं स्वसंवेदनपूर्वक प्रतीतमां आवी जाय छे.–ए ज सम्यग्दर्शन! ए ज छे
साध्यनी सिद्धि! ए ज छे मंगल चैतन्यप्रभात! अने ए ज छे महावीरनो मार्ग!
अहो, ए अपूर्व दशानी शांतिनी शी वात! वहाला साधर्मी भाई–बहेनो!
विचारो तो खरा, के जैनशासनना सर्वे संतोए जेनी खूबखूब प्रशंसा करी छे–ते
अनुभूति केवी हशे! ए वस्तुनो महिमा लक्षमां लईने तेनो निर्णय करो. एना
निर्णयथी तमने अपार आत्मबळ मळशे ने शीघ्र तमारुं कार्य सिद्ध थशे. बस, बंधुओ?–
* शीघ्र आत्मनिर्णय करो...... *
* आनंदमय अनुभूति करो...... *
* अपूर्व शांतिनुं वेदन करो...... *
* ने मोक्षना मार्गमां आवी जाओ. *
–आ भगवान महावीरनो सन्देश छे;
ने आ ज तेमना निर्वाणमहोत्सवनी साची अंजलि छे.
जय महावीर
[स्वानुभवरसझरती सम्यक्त्व–लेखमाळामां बीजा आठ लेखो समाप्त थया.]
केवो छोकरो!
अहा, आठ वरसनो एक छोकरो केवळज्ञानीपणे आकाशमां विचरतो हशे...
ने दिव्यध्वनिवडे लाखोकरोडो जीवोने प्रतिबोधतो हशे...एनो दिव्यदेदार केवो हशे!!
ईन्द्र–चक्रवर्तीओ एना चरणोने पूजता हशे!!
वाह रे वाह, आत्मा! तारी ताकातनी शी वात!!