Atmadharma magazine - Ank 380
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: २४ : आत्मधर्म : जेठ : २५०१
कह्युं छे; केमके बार अंग अने चौद पूर्वना ज्ञाननो आधार एवो ज्ञानस्वरूप शुद्धात्मा
तेणे जाणी लीधो तेथी ते श्रुतकेवळी छे. अमुक शास्त्रोने जाणे ते श्रुतकेवळी–ए व्याख्या
भेदथी छे, पण बधा ज्ञाननो आधार शुद्धात्मा छे, तेने जे जाणे ते श्रुतकेवळी–ए
व्याख्या अभेदद्रष्टिथी छे. एवा ‘निश्चय–श्रुतकेवळी’ आत्माओ (एटले के सम्यग्द्रष्टि
जीवो) अत्यारे आ भरतक्षेत्रमां विरल–विरल पण जोवामां आवे छे. भरतक्षेत्रना
भव्यजीवोने एवा विरला श्रुतज्ञानीओ पासेथी सत्श्रुतनी प्राप्ति करवानुं सौभाग्य हजी
तपी रह्युं छे–अने हजारो वर्षो सुधी अच्छिन्नपणे रहेवानुं छे–वीरनाथनो मार्ग
पंचमकाळना अंतसुधी हजी साडाअढार हजार वर्षो सुधी चालु रहेवानो छे.
भले आजे भरतक्षेत्रमां बार अंग–चौदपूर्वना ज्ञाता विद्यमान नथी, तोपण
बार अंग अने चौद पूर्व जेना आधारे छे एवा शुद्धात्माने जाणनारा श्रुतज्ञानीओ तो
आजे पण विद्यमान छे. ए भावश्रुतवडे मोक्षमार्गी आजे पण थई शकाय छे. बार
अंग चौद पूर्वना ज्ञाताओने जेवुं शुद्धात्मानुं ज्ञान हतुं तेवुं ज शुद्धात्मानुं ज्ञान आजे
पण श्रुतज्ञानीओने छे, अने प्रगट थई शके छे. –स्वात्माना श्रुतज्ञाननी अपेक्षाए ए
बंनेमां कांई फेर नथी. बार अंग चौदपूर्वना श्रुतज्ञानीओ जेवा शुद्धात्माने जाणता
हता, तेवा ज शुद्धात्मानुं ज्ञान आजे पण थई शके छे. माटे भव्यजीवो अंतरंगमां प्रमोद
करो के आजे पण सत्श्रुत जयवंत वर्ते छे! मोक्षने साधनारुं शुद्धात्मअनुभूतिरूप ज्ञान
आजे पण विद्यमान वर्ते छे. धन्य काळ!
–आ थई निश्चय–श्रुतनी वात. निश्चयश्रुत एटले श्रुतज्ञानवडे शुद्धात्मानुं ज्ञान.
आ शुद्धात्मानुं ज्ञान तो पंचमकाळना छेडा सुधी अविच्छिन्नपणे रहेवानुं छे, तेनो
विच्छेद नथी.
हवे व्यवहार–श्रुतज्ञान अपेक्षाए जोईए तो अत्यारे श्रुतनो घणो मोटो भाग
विच्छेद थई गयो छे, अने तेनो अंश विद्यमान छे. आज बार अंग चौद पूर्वना ज्ञाता
तो नथी पण एक अंगना पण पूर्णपणे ज्ञाता नथी छतां–आजे आपणी पासे श्रुतनो
जे नानकडो अंश विद्यमान छे ते सर्वज्ञ परंपराथी अविच्छिन्नपणे आवेलो होवाथी
तेनुं बिंदु पण सिंधुनुं कार्य करे छे. –वीतरागी अमृत भले थोडुं होय तो पण तेना
महान फळने आपे ज छे.
आजे जे पवित्र सत्श्रुत विद्यमान छे तेमां ‘श्री षट्खंडागम’ सौथी प्राचीन
अने सर्वज्ञ परंपराथी चाली आवेला छे. आपणा सौराष्ट्र देशमां गिरनार पर्वतनी चंद्र–