Atmadharma magazine - Ank 380
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: र : आत्मधर्म : जेठ : २५०१
चालो र्चा करीए • [साधर्मी – साधर्मी वच्चे वातचीत]
बे साधर्मी मळे एटले एकबीजाने देखीने सहेजे आनंद थाय; अने
तेमांय धर्मनी अवनवी वातचीत थतां विशेष आनंद थाय...अने वधु
आगळ वधतां जो अनुभूतिनी ऊंडीऊंडी चर्चाओ थाय तो तो केवी मजा
पडे! आ विभाग साधर्मीओनी एवी चर्चाओ रजु करीने सौने आनंद
आपशे आप पण आ विभागमां भाग लईने आनंदना भागीदार बनो.
* चारित्र अने सम्यक्त्व *
एक मुमुक्षु: चारित्रदशा धारण कर्ये ज मोक्ष पमाय छे.
बीजो मुमुक्षु: ए वात तद्न सत्य छे
[परंतु चारित्रदशा सम्यग्दर्शन पूर्वक ज होय छे.
सम्यग्दर्शन वगरना आचरणनी मोक्षमार्गमां कांई ज गणतरी नथी; माटे प्रथम
सम्यग्दर्शन करजे. सम्यग्दर्शन ते मोक्षमार्गमां प्रवेशवानी टिकिट छे एना वगर
मोक्षमां दाखल थवा जईश तो गुनेगार बनीश.)
* सुख....ज्ञानथी मळे, रागथी नहीं *
एक मुमुक्षु: भैया, अनेकविध शुभभाव करवा छतां जीवने जराय सुख केम नहीं
मळतुं होय?
बीजो मुमुक्षु: अरे भाई! सुख ते कांई रागथी मळे?–ना; सुख तो ज्ञानथी ज मळे.
पंचमहाव्रतनो शुभराग पण अज्ञानीने जराय सुखनुं कारण नथी थतो;–
क््यांथी थाय? ए तो राग छे, राग ते कांई सुखनुं कारण होय? रागना फळमां
बहारनो संयोग मळे, ने अंदर आकुळता थाय, पण कांई चैतन्यनी शांति
रागथी न मळे. आत्माना अतीन्द्रिय स्वरूपने जाणनारुं सम्यग्ज्ञान ते ज
सुखनुं कारण छे. चैतन्यना ज्ञानथी ज शांतिनुं वेदन थाय छे. (‘ज्ञानसमान न
आन जगतमें सुखको कारण’)
* पींछी अने मोक्ष *
एक मुमुक्षु: पींछी लीधा वगर मोक्ष थवानो नथी.
बीजो मुमुक्षु: हा, अने पींछी छोडया वगर पण मोक्ष थवानो नथी.
[माटे पींछी मोक्षनुं
कारण नथी; मोक्षनुं कारण बीजुं ज छे, तेने तुं आत्मामां शोध.)