बीजो मुमुक्षु: चक्रवर्तीने ९६००० राणीओनो ने छखंडनो परिग्रह भेगो करतां
भेगो नथी थतो; ज्यारे ते ९६००० राणीओ ने छखंड वगेरे बधोय परिग्रह
छोडवामां तो एक क्षण ज लागे छे; तेमां वर्षो नथी लागता. ज्यां चैतन्यमां
विरक्तदशा जागी के एक क्षणमां बधुं छोडीने संसारथी दूर भाग्या. बस,
तेवी रीते मोटुं ज्ञान के नानुं ज्ञान बंने एक जात छे, एटले जेम केवळज्ञान
रागथी जुदुं छे तेम साधकनुं नानुं ज्ञान पण रागथी जुदुं ज छे. एक ज पिताना
बे पुत्रोनी जेम केवळज्ञान अने मतिज्ञान बंने ज्ञाननी ज जात छे, एक ज्ञाननुं
ज परिणमन छे, जेम केवळज्ञानमां रागनुं कर्तृत्व नथी तेम सम्यग्द्रष्टिना मति–
श्रुतज्ञानमां पण ज्ञानथी भिन्न रागादिनुं कर्तृत्व नथी. ज्ञानस्वभावमां ज
तन्मय परिणमतुं तेनुं ज्ञान पण केवळज्ञाननी जेम ज रागनुं ने परनुं ज्ञाता छे,
तेनाथी जुदुं रहीने तेने जाणे छे. आवुं ज्ञान अतीन्द्रियसुखने साथे लेतुं प्रगटे
छे, ने पछी वधतुं–वधतुं केवळज्ञानरूप थईने महान सर्वोत्कृष्ट सुखने साधे छे.
अहो, ए ज्ञान अने ए सुखना महिमानी शी वात! आवा ज्ञानस्वभावने
ओळखीने तेनुं सेवन करो.