Atmadharma magazine - Ank 380
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ : २५०१ आत्मधर्म : ३ :
* वीरता– * (क्षणमां बधुं छोड्युं)
एक मुमुक्षु: वीरता शेमां छे?–भेगुं करवामां के छोडवामां?
बीजो मुमुक्षु: चक्रवर्तीने ९६००० राणीओनो ने छखंडनो परिग्रह भेगो करतां
(दिग्विजयमां) केटलाय वर्षो वीती जाय छे, –एक क्षणमां ए बधो परिग्रह
भेगो नथी थतो; ज्यारे ते ९६००० राणीओ ने छखंड वगेरे बधोय परिग्रह
छोडवामां तो एक क्षण ज लागे छे; तेमां वर्षो नथी लागता. ज्यां चैतन्यमां
विरक्तदशा जागी के एक क्षणमां बधुं छोडीने संसारथी दूर भाग्या. बस,
भोगोमां एवी वीरता नथी के जेवी त्यागमां वीरता छे.
* भेदज्ञानथी सिद्धि *
बंध्या अरे जे जीव ते सौ भेदज्ञान–अभावथी.
भेदज्ञान ज मुक्तिसुख पामवानो उपाय छे; –आम जाणीने हे जीव! तुं अतूट धाराए
भेदज्ञानने भाव; रागादिथी भिन्न शुद्धात्माने जाणीने तेने ज निरंतर भाव.
एक मुमुक्षु: केवळज्ञानी तो वीतराग छे एटले केवळज्ञानमां तो रागनुं कर्तृत्व न होय;
परंतु साधकनुं ज्ञान अधूरुं छे तेमां तो रागनुं कर्तृत्व होय ने?
बीजो मुमुक्षु: सांभळ भाई! जेम सोनानो मोटो कटको लोढाथी जुदो छे, तेम सोनानी
नानी कटकी पण लोढाथी जुदी छे; मोटुं सोनुं के नानुं सोनुं–बंने एक जात छे;
तेवी रीते मोटुं ज्ञान के नानुं ज्ञान बंने एक जात छे, एटले जेम केवळज्ञान
रागथी जुदुं छे तेम साधकनुं नानुं ज्ञान पण रागथी जुदुं ज छे. एक ज पिताना
बे पुत्रोनी जेम केवळज्ञान अने मतिज्ञान बंने ज्ञाननी ज जात छे, एक ज्ञाननुं
ज परिणमन छे, जेम केवळज्ञानमां रागनुं कर्तृत्व नथी तेम सम्यग्द्रष्टिना मति–
श्रुतज्ञानमां पण ज्ञानथी भिन्न रागादिनुं कर्तृत्व नथी. ज्ञानस्वभावमां ज
तन्मय परिणमतुं तेनुं ज्ञान पण केवळज्ञाननी जेम ज रागनुं ने परनुं ज्ञाता छे,
तेनाथी जुदुं रहीने तेने जाणे छे. आवुं ज्ञान अतीन्द्रियसुखने साथे लेतुं प्रगटे
छे, ने पछी वधतुं–वधतुं केवळज्ञानरूप थईने महान सर्वोत्कृष्ट सुखने साधे छे.
अहो, ए ज्ञान अने ए सुखना महिमानी शी वात! आवा ज्ञानस्वभावने
ओळखीने तेनुं सेवन करो.