Atmadharma magazine - Ank 380
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: ४ : आत्मधर्म : जेठ : २५०१
* गणधरनी जेम........सर्वज्ञना पुत्र छीए *
एक मुमुक्षु: मोक्षना साधक सम्यग्द्रष्टिने केवी निःशंकता होय छे?
बीजो मुमुक्षु: अहा, एनी शी वात! मतिश्रुतज्ञानी सम्यग्द्रष्टि जाणे छे के अमे पण
सर्वज्ञपदने साधनारा सर्वज्ञदेवना पुत्र छीए. एक ज पिताना बे पुत्रोनी जेम
केवळज्ञान अने मतिज्ञान बंनेनी जात एक ज छे. गणधरो–मुनिवरो ते मोटा
पुत्रो छे, ने अमे अविरत–समकिती नाना पुत्र छीए, –नाना पण सर्वज्ञना
पुत्र छीए, एटले रागथी जुदा पड्या छीए ने मोक्षने साधी रह्या छीए. ज्ञान
अने रागनी भिन्नताना भेदज्ञानवडे राग साथेनुं सगपण तोडीने सर्वज्ञपद
साथे सगपण बांध्युं छे–तेथी अमारुं चित्त परम शांत थयुं छे, ने गणधरादिनी
जेम अमे पण आनंदथी प्रभुना मोक्षमार्गमां चाली रह्या छीए. श्री
गौतमगणधरने ‘सर्वज्ञपुत्र’ कह्या छे; (‘साक्षात् सर्वज्ञपुत्र.... ’ आदिपुराण
२–५४) पं. बनारसीदासजीए सम्यग्द्रष्टिने ‘जिनेश्वर के लघुनन्दन’ कह्या छे.
मुनिओ ते बडा पुत्र छे ने सम्यग्द्रष्टि–चोथा गुणस्थानी ते छोटापुत्र छे,
–भलेनाना...पण छे सर्वज्ञना पुत्र, सर्वज्ञनी जातना. जेम नानुं पण सिंहनुं
बच्चुं–ते मोटा हाथीनेय भगाडे, तेम सम्यग्द्रष्टि भले नानो पण सर्वज्ञनो पुत्र,
तेनुं ज्ञान भले थोडुं पण सर्वज्ञनी जातनुं सम्यग्ज्ञान, ते सर्वे मोहरूपी हाथीने
भगाडी मुके ने सिद्धपदने साधे एवी ताकातवाळुं छे.
* महिलावर्षनी उजवणी *
एक मुमुक्षुबेन: बहेन! सांभळ्‌युं छे के हमणां आखी दुनियामां ‘महिलावर्ष’ ऊजवाई
रह्युं छे. तो आपणे बहेनोए पण तेमां भाग न लेवो जोईए?
बीजी मुमुक्षुबेन: हा बहेन, जरूर भाग लेवो जोईए. पण ते माटे आपणे शुं करीशुं?
‘आत्मधर्म’ मां तेनी सलाह पुछावीए तो!
‘ना रे बेन! तारे पूछाववानीये जरूर नहि पडे. जो, आ ज अंकमां छठ्ठा पाने
तेनी विगत आपी छे, ते ध्यानथी वांची ले...तेमां बहु सरस वात छे. ’
० ० ०
* “आत्मधर्म मेरा ऐसा परम मित्र है जो पगपग पर आनेवाले प्रतिकूल
प्रसंगों पर मेरे परिणामोंकी संभाल करता है और मुझे तीव्र कषायरूपी अग्निमें
जलनेसे बचाता है
उसके बिना मुझे चैन नहीं पडती हैं।” –एक मुमुक्षु.