बीजो मुमुक्षु: अहा, एनी शी वात! मतिश्रुतज्ञानी सम्यग्द्रष्टि जाणे छे के अमे पण
केवळज्ञान अने मतिज्ञान बंनेनी जात एक ज छे. गणधरो–मुनिवरो ते मोटा
पुत्रो छे, ने अमे अविरत–समकिती नाना पुत्र छीए, –नाना पण सर्वज्ञना
पुत्र छीए, एटले रागथी जुदा पड्या छीए ने मोक्षने साधी रह्या छीए. ज्ञान
अने रागनी भिन्नताना भेदज्ञानवडे राग साथेनुं सगपण तोडीने सर्वज्ञपद
साथे सगपण बांध्युं छे–तेथी अमारुं चित्त परम शांत थयुं छे, ने गणधरादिनी
जेम अमे पण आनंदथी प्रभुना मोक्षमार्गमां चाली रह्या छीए. श्री
मुनिओ ते बडा पुत्र छे ने सम्यग्द्रष्टि–चोथा गुणस्थानी ते छोटापुत्र छे,
–भलेनाना...पण छे सर्वज्ञना पुत्र, सर्वज्ञनी जातना. जेम नानुं पण सिंहनुं
बच्चुं–ते मोटा हाथीनेय भगाडे, तेम सम्यग्द्रष्टि भले नानो पण सर्वज्ञनो पुत्र,
तेनुं ज्ञान भले थोडुं पण सर्वज्ञनी जातनुं सम्यग्ज्ञान, ते सर्वे मोहरूपी हाथीने
भगाडी मुके ने सिद्धपदने साधे एवी ताकातवाळुं छे.
‘ना रे बेन! तारे पूछाववानीये जरूर नहि पडे. जो, आ ज अंकमां छठ्ठा पाने
तेनी विगत आपी छे, ते ध्यानथी वांची ले...तेमां बहु सरस वात छे. ’
जलनेसे बचाता है