: जेठ : २५०१ आत्मधर्म : ५ :
* एक जैनबंधु (जिसने अपना पत्ता नहीं लिखा) लिखते है कि–हमने ईस
माहका आत्मधर्म आज पहलीवार पढा; जिसको पढकर ऐसा लगा कि धर्म भी कुछ
चीज है, तथा संसार नश्वर है। हम सुन रहे थे कि सोनगढ जाकर आत्माको कितनी
शान्ति मिलती है! वहां पर यदि हवा भी चलती है और पशु–पक्षी भी बोलते है तो
ऐसा लगता है जैसे सब मुक्तिका मार्ग बोल रहे हैं; जगह जगह धर्मचर्चा हो रही है।
–यह धर्मचर्चा सुनकर आत्माको शांति मिलती है। (लेखक महोदयने ईसके बाद
महिलासमाजकी उन्नतिके लिये कोई सूचना मांगी है, सो ईस संबंधमें एक लेख आप
ईस अंकमें ही पढेंगे। –सं.)
* दिल्हीसे महेन्द्र महेता शुभेच्छाके साथ लिखते है कि– “आत्मधर्म” पत्रिका
प्राप्त कर अजीबोगजब प्रसन्नताका अनुभव कर रहा हूं। सम्पादन के वक्त वर्तमान
तथ्यमूलको द्रष्टिगत रख–साथ ही अनुकूल चित्रों के समावेशने पत्रिकामें और भी जान
डाल दी है।”
* पू. गुरुदेव जिनेन्द्रभगवंतोनी मंगलप्रतिष्ठा, बाहुबलीयात्रा तथा अनेकविध
धर्मप्रभावना करीने जेठ सुद सातमना रोज पुनःसोनगढ पधार्या छे...सोनगढ
पुनःवाजतुं–गाजतुं बन्युं छे, जिनवाणी पर प्रवचनो चाली रह्या छे: सवारे
प्रवचनसार गाथा. १२६ तथा बपोरे समाधिशतक गाथा ५० वंचाय छे.
* कोटा शहेरमां पू. गुरुदेव आठदिवस पधारतां अध्यात्म शिक्षणशिबिर तेमज
प्रवचनोमां हजारो जिज्ञासुओए भाग लीधो हतो. त्यारबाद जयपुर–मुंबई
अने भावनगर थईने गुरुदेव लाठी शहेर चारदिवस पधार्या हता.
श्रुतपंचमीना मंगलदिवसे लाठी शहेरना जिनमंदिरने पचीसवर्ष पूरा थतां
उत्सव मनायो हतो. त्यारबाद जेठ सुद सातमे पू. गुरुदेव सोनगढ पधार्या छे
ने सुखशांतिमां बिराजी रह्या छे.
* शाहदरा–दिल्ही मुमुक्षु मंडळ तरफथी वैशाख सुद बीजे गुरुदेवनी जन्मजयंती
आनंद उल्लासपूर्वक उजववामां आवी हती, ने गुरुदेवना महान उपकारने
प्रसिद्ध कर्यो हतो.