
अपमान करे–निंदा करे–द्वेष करे त्यां जाणे के मारो स्वभाव ज हणाई गयो–एम
अज्ञानीने अपमान लागे छे, अने बहारमां ज्यां अनुकूळता ने मान मळे त्यां जाणे के
मारो स्वभाव वधी गयो–एम मूढ जीव माने छे. आवी मान–अपमाननी वृत्ति
अज्ञानीने थाय छे. ज्ञानीने आवा प्रकारनी मान–अपमाननी वृत्ति थती नथी, केमके
परसंयोगवडे पोताना आत्मानी महत्ता के हीनता ते मानता नथी.
द्वेषभावने करे छे, प्रशंसा करनार तेना पोताना रागभावने करे छे, पण मारा
ज्ञानस्वभावमां ते कांई करता नथी–आवा भानमां धर्मीने मान–अपमाननी बुद्धि छूटी
गई छे.
नमवानुं कह्युं, त्यां बाहुबलीने एम थयुं के अमारा पिताजीए (ऋषभदेव भगवाने)
अमने बंनेने राज आप्युं छे, भरत राजा छे तेम हुं पण राजा छुं–तो हुं भरतने केम
नमुं? एम जराक माननी वृत्ति आवी; बंने वच्चे लडाई थतां भरत हारी गया; त्यां
तेने जराक अपमाननी वृत्ति थई; छतां ते बंने धर्मात्माने ते वखतेय ज्ञानस्वभावनी
ज भावना छे, ज्ञानस्वभावनी भावना छूटीने रागद्वेषनी वृत्ति थई नथी,
ज्ञानभावनानी ज अधिकता छे; मान–अपमाननी वृत्ति थई माटे ते वखते ते अज्ञानी
हता–एम नथी; अंदर ज्ञानभावनानुं जोर पड्युं छे, तेथी मान–अपमानरूपे तेमनुं
ज्ञान परिणमतुं ज नथी, ए वातनी अज्ञानीने ओळखाण नथी.
ने ज्ञानस्वभावनी ज भावनावडे ज्ञाननी अधिकतारूपे ज परिणमे छे. ज्ञानीनी आवी
आत्मभावनाने अज्ञानी ओळखतो नथी, एटले ज्ञानीने जराक राग–द्वेषनी वृत्ति देखे त्यां
तेने एवो भ्रम थाय छे के ज्ञानी आ राग–द्वेषने ज करे छे. पण ज्ञानी तो ते वखते राग–
द्वेषथी अधिक ज्ञानभावरूपे ज परिणमे छे तेने खरेखर ज्ञानी ज ओळखे छे.