Atmadharma magazine - Ank 381
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: १४ : आत्मधर्म : अषाढ : २५०१
पोतानी महत्ता मानी छे एवा अज्ञानीने मान–अपमान लाग्या वगर रहेतुं नथी. कोई
अपमान करे–निंदा करे–द्वेष करे त्यां जाणे के मारो स्वभाव ज हणाई गयो–एम
अज्ञानीने अपमान लागे छे, अने बहारमां ज्यां अनुकूळता ने मान मळे त्यां जाणे के
मारो स्वभाव वधी गयो–एम मूढ जीव माने छे. आवी मान–अपमाननी वृत्ति
अज्ञानीने थाय छे. ज्ञानीने आवा प्रकारनी मान–अपमाननी वृत्ति थती नथी, केमके
परसंयोगवडे पोताना आत्मानी महत्ता के हीनता ते मानता नथी.
कोई निंदा करे के प्रशंसा करे, ते बंने वखते हुं तो तेनाथी जुदो ज्ञानस्वरूप छुं,
निंदाना के प्रशंसाना शब्दो मारामां आवता नथी, निंदा करनार तेना पोताना
द्वेषभावने करे छे, प्रशंसा करनार तेना पोताना रागभावने करे छे, पण मारा
ज्ञानस्वभावमां ते कांई करता नथी–आवा भानमां धर्मीने मान–अपमाननी बुद्धि छूटी
गई छे.
स्वभावभावनावडे तेमने मान–अपमाननी वृत्ति टळीने समाधि–शांति थाय छे.
भरत अने बाहुबली बंने चरमशरीरी समकिती हता; भरतचक्रवर्तीए बाहुबलीने
नमवानुं कह्युं, त्यां बाहुबलीने एम थयुं के अमारा पिताजीए (ऋषभदेव भगवाने)
अमने बंनेने राज आप्युं छे, भरत राजा छे तेम हुं पण राजा छुं–तो हुं भरतने केम
नमुं? एम जराक माननी वृत्ति आवी; बंने वच्चे लडाई थतां भरत हारी गया; त्यां
तेने जराक अपमाननी वृत्ति थई; छतां ते बंने धर्मात्माने ते वखतेय ज्ञानस्वभावनी
ज भावना छे, ज्ञानस्वभावनी भावना छूटीने रागद्वेषनी वृत्ति थई नथी,
ज्ञानभावनानी ज अधिकता छे; मान–अपमाननी वृत्ति थई माटे ते वखते ते अज्ञानी
हता–एम नथी; अंदर ज्ञानभावनानुं जोर पड्युं छे, तेथी मान–अपमानरूपे तेमनुं
ज्ञान परिणमतुं ज नथी, ए वातनी अज्ञानीने ओळखाण नथी.
ज्ञानस्वभावनी भावनामां ज्ञानीने ज्ञाननुं ज परिणमन थाय छे, मान–अपमान
थतुं नथी; जराक रागद्वेषनी वृत्ति थाय त्यां ते वृत्तिने पण ज्ञानथी भिन्नरूप ज जाणे छे
ने ज्ञानस्वभावनी ज भावनावडे ज्ञाननी अधिकतारूपे ज परिणमे छे. ज्ञानीनी आवी
आत्मभावनाने अज्ञानी ओळखतो नथी, एटले ज्ञानीने जराक राग–द्वेषनी वृत्ति देखे त्यां
तेने एवो भ्रम थाय छे के ज्ञानी आ राग–द्वेषने ज करे छे. पण ज्ञानी तो ते वखते राग–
द्वेषथी अधिक ज्ञानभावरूपे ज परिणमे छे तेने खरेखर ज्ञानी ज ओळखे छे.
गमे तेवा प्रतिकूळ प्रसंगमां के अनुकूळ प्रसंगमां पण चैतन्यभावनावाळो जीव
पोताना सम्यग्दर्शनादिथी च्यूत थतो नथी, ज्ञानभावथी च्यूत थतो नथी. आ रीते ज्ञान–