Atmadharma magazine - Ank 381
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: अषाढ : २५०१ आत्मधर्म : १५ :
स्वभावनी भावना ज वीतरागी समाधिनो उपाय छे, माटे ते ज भावना करवा जेवी
छे, एम पूज्यपाद–प्रभुनो उपदेश छे.
ज्ञानी तो जाणे छे के माननो प्रसंग हो के अपमाननो प्रसंग हो, हुं तो ज्ञान ज
छुं; अनुकूळ प्रसंग वखते पण हुं तो ‘ज्ञान’ ज छुं, ने प्रतिकूळ प्रसंग वखते पण हुं तो
‘ज्ञान’ ज छुं; एम सर्व प्रसंगे हुं तो ज्ञानस्वभाव ज छुं–एवी ज्ञानभावना ज्ञानीने
वर्ते छे, ने ते ज्ञानभावनाना जोरे तेने राग–द्वेषनो नाश ज थतो जाय छे, एटले तेने
समाधि–शांति थाय छे. माटे–
[हवे मान–अपमान संबंधी विकल्पो दूर करवानो उपाय बतावशे.]
* * * * *
• सोनगढमां जैनदर्शन–शिक्षणवर्ग •
सोनगढमां दरवर्षनी माफक श्रावण मासमां
तत्त्वजिज्ञासु जैन भाईओ माटेनो शिक्षणवर्ग वीस दिवस
चालशे. श्रावण सुद पांचमने सोमवार ता. ११–८–७५ थी
शरू करीने श्रावण वद आठमने शनिवार ता. ३०–८–७५
सुधी चालशे. शिक्षणवर्गमां मोक्षमार्गप्रकाशक, द्रव्यसंग्रह
अने जैन सिद्धांत प्रश्नोत्तरमाळा चालशे; जेमनी पासे ते
पुस्तको होय तेमणे साथे लाववा. शिक्षणवर्गमां लाभ लेवा
जेमनी ईच्छा होय तेमणे नीचेना सरनामे जणाववा खास
सूचना छे.–
“शिक्षणवर्ग” श्री दि. जैन स्वाध्याय मंदिर
सोनगढ ()