: अषाढ : २५०१ आत्मधर्म : १७ :
* आत्माने समस्त अन्य द्रव्योथी जुदो पाडनारुं *
आत्मानुं स्वरूप – अस्तित्व केवुं छे?
श्री प्रवचनसार गा. १५४ मां आत्माना भिन्न
अस्तित्वनुं स्वरूप बतावतां आचार्य देव कहे छे के
पोताना चैतन्यमय अस्तित्वमां रहेला एवा उत्पाद–
व्यय–ध्रुवता के द्रव्य–गुण–पर्याय एवा त्रिविध स्वभावने
जे जाणे छे ते जीव अन्य द्रव्यमां मोहने पामतो नथी;
केमके ते पोताना समस्त द्रव्य–गुण–पर्यायने पोतामां देखे
छे, ने परना द्रव्य–गुण–पर्यायने परमां देखे छे, तेनो
संबंध पोतानी साथे नथी–एम ते जाणे छे, एटले तेने
परमां क््यांय एकत्वबुद्धिरूप मोह थतो नथी.
जगतमां एक पोतानो आत्मा स्वतत्त्व, अने बीजा अनंता जीव–अजीव–
परतत्त्वो, एवा स्व–परज्ञेयो विद्यमान सत् छे.
तेमां आ आत्मानुं अस्तित्व बीजा बधाथी जुदुं स्वतंत्र छे एम पोतानी चेतना
वडे जणाय छे. आत्मा चैतन्यस्वरूप छे–ए ज तेनुं स्वरूप–अस्तित्व छे.
ते चैतन्यरूप आत्मानुं अस्तित्व केवुं छे?
पोताना चैतन्यरूप द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणेमां रहेलुं छे, अथवा पोताना
चैतन्यरूप उत्पाद–व्यय–ध्रुवतामां रहेलुं छे; आ रीते पोताना त्रिविधस्वभावमां
आत्मानुं अस्तित्व छे. एनाथी बहार बीजे क््यांय आत्मानुं अस्तित्व नथी.
जुओ, अस्तित्वमां द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणे समाई जाय छे, अथवा उत्पाद–
व्यय–ध्रुवता त्रणे समाई जाय छे,–पण ते त्रणे चैतन्यस्वरूप छे.–आवा स्वरूपे पोताना
आत्माने ओळखवो जोईए.