Atmadharma magazine - Ank 381
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: १८ : आत्मधर्म : अषाढ : २५०१
धर्मीजीव पोताना स्वरूपने परथी जुदुं एम विचारे छे के–चेतनभावे जे ध्रुव रहे
छे, तेम ज पूर्व–पछीना व्यतिरेकरूप जे उत्पाद–व्यय तेने जे स्पर्शे छे–एवा उत्पाद–
व्यय–धु्रव त्रणेमां रहेला चेतनस्वरूपे मारुं अस्तित्व छे. मारा द्रव्य–गुण–पर्याय
त्रणेयस्वभावो मारा अस्तित्वमां समाय छे.–आवुं मारुं अस्तित्व, बीजा बधायथी
अत्यंत जुदुं छे.
–आम चैतन्यलक्षणवडे बीजा बधाथी पोताना अस्तित्वने अत्यंत जुदुं देखनार
जीव, पोताना चैतन्यभावने रागादि अन्यभावोथी पण जुदो जाणे छे. चैतन्यभावने
पोताना उत्पाद–व्यय–धु्रवथी के द्रव्य–गुण–पर्यायथी जुदो नथी जाणतो, ते त्रणे तो
पोतानो स्वभाव ज छे–एम ते जाणे छे.–आवा सम्यग्ज्ञान वगर आत्माने मध्यस्थता,
वीतरागता के प्रशमभाव थई शके नहि. सम्यग्ज्ञाननुं फळ तो प्रशमनी प्राप्ति छे.
चैतन्यमय द्रव्य–गुण–पर्यायमां रहेला, अथवा उत्पाद–व्यय–धु्रवमां रहेला
पोताना स्वरूपअस्तित्वने ज धर्मीजीव स्व–परना विभागनी सिद्धि माटे पदे–पदे
अवधारण करे छे. –आवा द्रव्यस्वभावने जाणतां परद्रव्यप्रत्येनो मोह दूर थई जाय छे
ने प्रशांतभाव प्रगटे छे.
१. चेतनपणानो अन्वय जेनुं लक्षण छे एवुं द्रव्य,
२. चेतना–विशेषपणुं जेनुं लक्षण छे एवो गुण,
३. चेतनपणाना व्यतिरेको जेनुं लक्षण छे एवी पर्यायो,
धर्मी जाणे छे के,–आवा द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणे स्वरूपमां हुं रहेलो छुं, ते ज मारुं
अस्तित्व छे; मारा आवा स्वभाव वडे हुं खरेखर बीजा बधायथी अत्यंत जुदो छुं.
मारी जेम जगतना बीजा अन्य द्रव्यो पण सौ पोतपोताना द्रव्य–गुण–पर्यायमां
ज रहेलां छे; तेमनी साथे मारे कांई ज संबंध नथी.
ते द्रव्यनां उत्पाद–व्यय–धु्रवतानो संबंध तेमना अस्तित्व साथे छे, मारी साथे
नहि.
मारा उत्पाद–व्यय–ध्रुवतानो संबंध मारा अस्तित्व साथे छे, परनी साथे नहि.
जुओ, आ वस्तुस्वरूपनुं भेदज्ञान! आ स्व–परनो साचो विभाग.