Atmadharma magazine - Ank 381
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: २० : आत्मधर्म : अषाढ : २५०१
(र) अ ध्य त्म र स – घ ल न
भविकजनोने आनंदजनी वैराग्य – अनुप्रेक्षा
[श्री कार्तिकस्वामी रचित बार अनुप्रेक्षानो गुजराती अनुवाद : ले : १]
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आ विभागमां नवीन स्वाध्यायवडे ज्ञान–वैराग्यनी पुष्टि थाय ने
अध्यात्मरसनुं घोलन थाय, तेवा मूळशास्त्रनो मात्र गुजराती अनुवाद आपीए छीए.
तेमां प्रथम ‘पाहुड–दोहा’नो अनुवाद गतांकमां पूरो थयो. (ध्यान रहे के, ‘पाहुडदोहा’
अने ‘अष्टप्राभृत’ बंने रचनाओ तद्न जुदी छे. अष्टप्राभृतनी मूळ गाथाओनो
अनुवाद अगाउ आत्मधर्म अंक ३२१ थी ३२४ सुधीमां आपी गया छीए.) हवे अहीं
स्वामीकार्तिकेयमुनिराज रचित बार वैराग्य–अनुप्रेक्षाओनो अनुवाद आपवामां
आवशे.
आ बार वैराग्यभावनाओ बधाय तीर्थंकरो पण दीक्षाप्रसंगे चिंतवे छे, ने
भविकजनोने माटे ते आनंदजननी छे,–एना चिंतनवडे जीवने जरूर आनंद थाय छे. आ
ग्रंथमां कुल ४८९ गाथाओ छे, तेमां बार भावनाओ द्वारा वस्तुस्वरूपनुं गंभीर
प्रतिपादन कर्युं छे...केवा वस्तुस्वरूपना चिंतनवडे जीवने साचो वैराग्य होई शके ते वात
आ शास्त्र बहु सारी रीते समजावे छे. सामान्य मान्यताअनुसार, वर्तमान उपलब्ध
बधाय जैन साहित्यमां आ ‘अनुप्रेक्षा–ग्रंथ’ सौथी प्राचीन होवानुं मनाय छे; विक्रम
संवतनी पूर्वे २०० वर्ष अगाउ, एटले के महावीर भगवान पछी ३००–४०० वर्षमां ज
तेनी रचना थई होवानुं मनाय छे; अने ग्रंथना विषयोनी गंभीरता जोतां ते मान्यता
पुष्ट थाय छे. अने ते मान्यता साची होय तो,
षट्खंडागम अने समयसार करतां पण
सेंकडो वर्ष प्राचीन एवो आ एक अणमुलो ग्रंथ आजे आपणने उपलब्ध छे.
‘अध्यात्म–झवेरी’ श्रीमद्राजचंद्रजीए आ अध्यात्मरत्नने पारखी लीधुं हतुं;
तेना संबंधमां तेओश्री लखे छे के ते वैराग्यनो उत्तम ग्रंथ छे. तेमां द्रव्यनुं स्वरूप
बतावनार चार श्लोक अद्भुत छे. गई साल (वि. सं. १९५६ मां) जेठ मासमां अमे
मद्रास गया हतां. कार्तिकेयस्वामी ए भूमिमां बहु विचर्या छे. ए तरफना नग्न ऊंचा