
तेमां प्रथम ‘पाहुड–दोहा’नो अनुवाद गतांकमां पूरो थयो. (ध्यान रहे के, ‘पाहुडदोहा’
अने ‘अष्टप्राभृत’ बंने रचनाओ तद्न जुदी छे. अष्टप्राभृतनी मूळ गाथाओनो
अनुवाद अगाउ आत्मधर्म अंक ३२१ थी ३२४ सुधीमां आपी गया छीए.) हवे अहीं
स्वामीकार्तिकेयमुनिराज रचित बार वैराग्य–अनुप्रेक्षाओनो अनुवाद आपवामां
आवशे.
ग्रंथमां कुल ४८९ गाथाओ छे, तेमां बार भावनाओ द्वारा वस्तुस्वरूपनुं गंभीर
प्रतिपादन कर्युं छे...केवा वस्तुस्वरूपना चिंतनवडे जीवने साचो वैराग्य होई शके ते वात
आ शास्त्र बहु सारी रीते समजावे छे. सामान्य मान्यताअनुसार, वर्तमान उपलब्ध
बधाय जैन साहित्यमां आ ‘अनुप्रेक्षा–ग्रंथ’ सौथी प्राचीन होवानुं मनाय छे; विक्रम
संवतनी पूर्वे २०० वर्ष अगाउ, एटले के महावीर भगवान पछी ३००–४०० वर्षमां ज
तेनी रचना थई होवानुं मनाय छे; अने ग्रंथना विषयोनी गंभीरता जोतां ते मान्यता
पुष्ट थाय छे. अने ते मान्यता साची होय तो,
बतावनार चार श्लोक अद्भुत छे. गई साल (वि. सं. १९५६ मां) जेठ मासमां अमे
मद्रास गया हतां. कार्तिकेयस्वामी ए भूमिमां बहु विचर्या छे. ए तरफना नग्न ऊंचा