: अषाढ : २५०१ आत्मधर्म : २५ :
विद्वानोनुं मुख्य कार्य ए छे के –
आगमना रहस्यनुं उद्घाटन करीने समाजनी सामे राखवुं
“विद्वान केवल समाजके मुख नहीं है। वे आगमके रहस्योद्घाटनके
जिम्मेदार हैं। अतः उन्हें हमारे अमुक वक्तव्यसे समाजमें कैसी प्रतिक्रिया होती है,
वह अनुकूल होती है या प्रतिकूल, यह लक्षमें रखना जरुरी नहीं है। यदि उन्हें
किसी प्रकारका भय हो भी तो सबसे बडा भय आगमका होना चाहिए। विद्वानोंका
प्रमुख कार्य जिनागमकी सेवा है और वह तभी संभव है जब वे समाजके भयसे
मुक्त होकर सिद्धांतके रहस्यको उसके सामने रख सकें। कार्य बडा है। इस
कालमें इसका उनके ऊपर उत्तरदायित्व है, इसलिए उन्हें यह कार्य सब
प्रकारकी मोह–ममताको छोड़कर करना ही चाहिए। समाजका संधारण करना
उनका मुख्य कार्य नहीं है, यदि वे दोनों प्रकारके कार्यों का यथास्थान निर्वाह
कर सकें तो उत्तम है। पर समाजके संधारणके लिये आगमको गौण करना उत्तम
नहीं है। हमें भरोसा है कि विद्वान इस निवेदनको अपने हृदयमें स्थान देंगे और
ऐसा मार्ग स्वीकार करेंगे जिससे उनके सद्प्रयत्नस्वरूप आगमका रहस्य
विशदताके साथ प्रकाशमें आवे।” (पंडित जगन्मोहनलालजी शास्त्री, कटनी)
विद्वानोनुं मुख्य कार्य बतावतुं पंडितजीनुं आ कथन गुरुदेव घणीवार प्रवचनमां
याद करे छे: “विद्वानो ए मात्र समाजनी वात करवानुं मोढुं ज नथी; तेओ तो आगमनुं
रहस्य खोलवा माटे जवाबदार छे. एटले, तेमणे एवुं लक्ष राखवुं जरूरी नथी के अमारा
अमुक कथनथी समाजमां केवी असर थशे!–अनुकूळ थशे के प्रतिकूळ? हा, जो तेओए कंई
पण बीक राखवा जेवुं होय तो सौथी मोटो भय आगमनो होवो जोईए–के आगमविरुद्ध
कंई कथन न थई जाय. विद्वानोनुं मुख्यकार्य जिनागमनी सेवा छे, अने ते त्यारे ज बनी
शके के ज्यारे तेओ समाजना भयथी मुक्त थईने सिद्धांतनुं रहस्य तेनी सामे राखी शके.
काम तो मोटुं छे; अने आ काळमां तेनी जवाबदारी विद्वानो उपर छे, माटे तेओए बधा
प्रकारनी मोहममता छोडीने आ काम करवुं ज जोईए. समाजनी देखभाळ करवी ए कांई
विद्वानोनुं मुख्य काम नथी. जो तेओ बंने प्रकारना कार्योनो यथास्थान निर्वाह करी शके तो
ते उत्तम छे; पण समाजनी देखभाळ माटे, के समाजना रंजन माटे, आगमने गौण करवा
ते व्याजबी नथी. अमने विश्वास छे के विद्वानो आ निवेदनने पोताना हृदयमां स्थान देशे,
अने एवो मार्ग अंगीकार करशे के जेथी तेमना सद्प्रयत्नना फळरूपे आगमनुं रहस्य
वधारे स्पष्टताथी प्रसिद्धिमां आवे.”