: २६ : आत्मधर्म : अषाढ : २५०१
• श्री अर्जिकामाताजीनी
साथे महान लाभ •
भगवानमहावीरना अढीहजार वर्षीय–निर्वाणमहोत्सवना
हर्षोपलक्षमां रजु करेल निबंध–योजनामां ६७ भाई–बेनोए उत्साहथी
भाग लीधो छे, तेमनां नाम धन्यवाद साथे आ अंकमां आप्या छे. तेमां
अर्जिकामाताजी साथे रहीने तेमनी सेवा अने तत्त्वचर्चानो लाभ मुमुक्षु
ब्हेनो कई रीते ल्ये छे–ते संबंधी भावभीना निबंधो ३८ बहेनोए
लखी मोकल्या छे; अने ‘मुनिवरोनी साथे’ ना सत्संगना लेखो २९
भाईओए लखी मोकल्या छे; तेमांथी कोई कोई निबंध अहीं
संशोधनपूर्वक आपता रहेशुं, ते अनुसार बे मुमुक्षु बहेनोना संयुक्त
लेखो अहीं आप्या छे.
एक वात ध्यानमां राखवी के आ निबंधो भावनारूप छे, एटले
के भावनाना बळे आपणे हजारो वर्षना काळना अंतरने ओळंगीने
सती चंदना–सीता के ब्राह्मी–सुंदरी–अर्जिका माताओ, के कुंदकुंद–धरसेन
वगेरे मुनिभगवंतो जाणे अत्यारे ज विचरता होय ने आपणे तेमनो
सीधो सत्संग करता होईए–एवी कल्पनाथी आ लेखोनुं संकलन छे;
अने तेमां संतजनोना सहवासनी भावनाथी ज्ञान–वैराग्यनी पुष्टिनो
लाभ थाय छे. (–सं.)
भगवान महावीरना समवसरणनी साथे विहार करतां करतां ३६०००
आर्यिकासंघना शिरोमणी महासती चंदनामाताजी एकवार अमारी नगरीमां पधार्या...
चारेकोर आनंद आनंद छवाई गयो. परम धीर–गंभीर–वैरागी ए माताजीनी मुद्रा
अध्यात्मतेजथी चमकी रही हती. महाभाग्ये आजे माताजीनुं आहारदान पण अमारा
आंगणे थयुं ने अमने भक्तिनो महान लाभ मळ्यो. आहारदान पछी हुं अने मारी
मुमुक्षुसखीओ माताजीनी साथेसाथे तेमना संघमां गई. अहा, आवा माताजीनो संग
छोडवो केम गमे? ए तो जीवननो आनंदकारी प्रसंग छे. भोजन पछी बपोरना समये
अर्जिका–चंदनामाताजी सामायिक करता हता; तेओ तो चैतन्यनुं ध्यान करता करता
निर्विकल्प–समरस पीता हता. एमनी निर्विकल्प ध्यानमुद्रा अमने बहु ज गमती. ने
अमने पण चैतन्यनो अनेरो महिमा