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माताजी:–हा, बहेन! स्वभावथी तो सरखा छे; ने तेने ओळखीने जो आत्मा
आवतुं.
माताजी:–हा, भगवान थया तेओ पण पहेलांं तो आपणी जेम संसारी ज हता;
छे. स्त्रीपर्यायमां पण आत्माने ओळखीने मोक्षनी साधना शरू थई शके छे; ने पछी
स्त्रीपर्याय छेदीने ते साधना पूर्ण करतां आपणो आत्मा भगवान थई शके छे.
आ संसारभ्रमणनो थाक ऊतरी जाय–ते माटे अमने विशेष उपदेश आपो!
जोईए. जिनमंदिरे जईने हंमेशां बहुमानथी अरिहंत देवनुं स्वरूप विचारवुं. सर्वज्ञ–
वीतराग–देवनुं स्वरूप केवुं छे! तेमना अने मारा स्वरूपमां कया प्रकारे समानता छे ने
कया प्रकारे फेर छे! तेना विचारथी आत्मानुं शुद्ध स्वरूप समजी, सम्यग्दर्शननो घणो
ऊंडो प्रयत्न करवो जोईए.
माताजी:–बेन, आत्मानी साची लगनीथी प्रयत्न करे तो स्त्रीपर्यायमां पण
बधा स्त्रीओ ज छेने! छतां आत्माने ओळखीने ते बधा केवी मजानी आत्मसाधना
स्त्रीपर्यायमां केवळज्ञान न थाय पण आत्मज्ञान तो थई शके. जुओ,
महावीरभगवानना जीवने सिंहनी पर्यायमां सम्यग्दर्शन थयुं; पार्श्वनाथभगवानना
जीवे हाथीना भवमां सम्यग्दर्शन कर्युं; तोपछी आ तो मनुष्यअवतार मळ्यो छे!–माटे
तेमां उत्साहथी वीतरागी देव–गुरु–धर्मनी खरी सेवा करीने आत्मानुं स्वरूप समजवुं ने
सम्यग्दर्शन प्रगट करीने आत्माने मोक्षमार्गनी साधनामां जोडी देवो.