Atmadharma magazine - Ank 381
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: २८ : आत्मधर्म : अषाढ : २५०१
मुमुक्षुबेन:–हे माता! शुं आ आत्मा अने परमात्मा बंने सरखा छे?
माताजी:–हा, बहेन! स्वभावथी तो सरखा छे; ने तेने ओळखीने जो आत्मा
पुरुषार्थ करे तो ते पोते ज परमात्मा थई जाय छे. परमात्मपणुं कांई बहारथी नथी
आवतुं.
मुमुक्षुबेन:–माता, आपणो स्त्रीनो आत्मा पण भगवान थई शके?
माताजी:–हा, भगवान थया तेओ पण पहेलांं तो आपणी जेम संसारी ज हता;
तेओ आत्मस्वरूप ओळखीने, तेने साधीने सिद्ध थया, अने आजे सिद्धालयमां बिराजे
छे. स्त्रीपर्यायमां पण आत्माने ओळखीने मोक्षनी साधना शरू थई शके छे; ने पछी
स्त्रीपर्याय छेदीने ते साधना पूर्ण करतां आपणो आत्मा भगवान थई शके छे.
मुमुक्षुबेन:–वाह माता! केवी आनंदनी वात छे! खरेखर आपे आजे अमने
उत्तम मार्ग बतावीने उपकार कर्यो छे. अमे आत्मानी साधना जलदी करीए ने अमारो
आ संसारभ्रमणनो थाक ऊतरी जाय–ते माटे अमने विशेष उपदेश आपो!
माताजी:–सांभळ बेन! आत्मानी ऊंडी जिज्ञासाथी धर्मात्मानो संग करवो
जोईए; संसारनो परिचय जेम बने तेम ओछो करीने साधर्मीनो परिचय वधारवो
जोईए. जिनमंदिरे जईने हंमेशां बहुमानथी अरिहंत देवनुं स्वरूप विचारवुं. सर्वज्ञ–
वीतराग–देवनुं स्वरूप केवुं छे! तेमना अने मारा स्वरूपमां कया प्रकारे समानता छे ने
कया प्रकारे फेर छे! तेना विचारथी आत्मानुं शुद्ध स्वरूप समजी, सम्यग्दर्शननो घणो
ऊंडो प्रयत्न करवो जोईए.
मुमुक्षुबेन:–माताजी, आवी स्त्रीपर्यायमां सम्यग्दर्शन पामवुं अघरूं न पडे?
माताजी:–बेन, आत्मानी साची लगनीथी प्रयत्न करे तो स्त्रीपर्यायमां पण
सम्यग्दर्शन जरूर थाय छे. जो ने! वीरप्रभुना संघमां आ ३६००० आर्यिकाओ छे ते
बधा स्त्रीओ ज छेने! छतां आत्माने ओळखीने ते बधा केवी मजानी आत्मसाधना
करी रह्या छे! स्त्रीपर्याय देखीने मुंझावुं नहि, पण आत्मानी जिज्ञासा वधारवी.
स्त्रीपर्यायमां केवळज्ञान न थाय पण आत्मज्ञान तो थई शके. जुओ,
महावीरभगवानना जीवने सिंहनी पर्यायमां सम्यग्दर्शन थयुं; पार्श्वनाथभगवानना
जीवे हाथीना भवमां सम्यग्दर्शन कर्युं; तोपछी आ तो मनुष्यअवतार मळ्‌यो छे!–माटे
तेमां उत्साहथी वीतरागी देव–गुरु–धर्मनी खरी सेवा करीने आत्मानुं स्वरूप समजवुं ने
सम्यग्दर्शन प्रगट करीने आत्माने मोक्षमार्गनी साधनामां जोडी देवो.