: ३० : आत्मधर्म : अषाढ : २५०१
भव्यजीव भविष्यमां चोक्कस निर्वाणने पामे छे.’–माटे आत्माना उत्साह अने प्रेमपूर्वक
तेना श्रद्धा–ज्ञान–अनुभवनो प्रयत्न करवो; तेथी जरूर कल्याण थशे.
(विशेष माटे जुओ पानुं ३४)
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जैनमार्ग
(रात्रिचर्चामां गुरुदेवे कहेल जैनमार्गनो महिमा: जेठमास)
जैनमार्गमां भगवान सर्वज्ञदेवे द्रव्य–क्षेत्र–काळ–
भावस्वरूप जेवो आत्मा जोयो छे तेवा आत्माने जाण्ये ज
आत्मानो अनुभव अने निर्विकल्प शांति थाय. पण द्रव्य–क्षेत्र–
काळ–भावस्वरूप आत्मवस्तुने जाण्या वगर, बीजी रीते जेओ
मानता होय तेमने न तो आत्मअनुभव होय, न द्रव्यद्रष्टि होय,
के न निर्विकल्प ध्यान होय.
आत्मा एक स्वतंत्र चेतनद्रव्य, असंख्यप्रदेशी तेनुं
स्वक्षेत्र, तेनी परिणति ते तेनो स्वकाळ, ने अनंत गुणोस्वरूप
तेनो स्वभाव–आवा स्वद्रव्य–क्षेत्र–काळ–भावरूप आत्मवस्तु छे
ते ज सत् छे, ने एवी सत् वस्तुने जाणीने तेना ध्यानथी ज
निर्विकल्पशांति के द्रव्यद्रष्टि थाय छे; स्वद्रव्य–क्षेत्र–काळ–भावमांथी
एक पण बोलने काढी नांखे के विपरीत माने एने जैनमार्गनी
खबर नथी. एवा जीवोनो उपदेश ते साचो उपदेश नथी.
स्वद्रव्य–गुण–पर्यायस्वरूप, अथवा स्वद्रव्य–क्षेत्र–काळ–
भावरूप वस्तुनुं अस्तित्व ते मूळभूत सत् छे. स्वथी अस्तिपणुं
ने परथी नास्तिपणुं–एवा अनेकांतस्वरूप जैनमार्गने जाणवाथी
ज साचुं ज्ञान, साची द्रष्टि ने निर्विकल्पअनुभूति थाय छे.
लोकोमां तो कुगुरुओ अध्यात्मउपदेशना नामे विपरीत प्ररूपणा
करीने लोकोने छेतरी रह्या छे; पण जैनमार्ग अनुसार वस्तुस्वरूप
( स्वद्रव्य–क्षेत्र–काळ–भाव)नी परीक्षा करीने जिज्ञासुजीवो सत्–
असत्नो बराबर विवेक करे छे, ने जैनसिद्धांत अनुसार
आत्मानुं यथार्थ स्वरूप जाणीने तेने साधे छे.