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करवा जेवुं छे तेना भान विना, बेभानपणे विषय–कषायोनी रमतमां ने रमतमां तमे
मनुष्यभवरूपी रत्नने संसारना दरियामां फेंकी दीधुं; एक पछी एक–एम अनंता
तमारा हाथमां छे...
मनुष्यअवतार तो आत्मानुं अपूर्व कल्याण करवा माटे चिंतामणि–रत्न समान छे...
तारुं हित करवानो अवसर हजी तारा हाथमां छे,–जो जे! फेंकी न देतो!
करे छे त्यां ते आभो बनी जाय छे के अरे! केटला बधा भव में नकामा फेंकी दीधा?
आवा मनुष्यअवतारमां आवा मजाना देव–गुरु–धर्म मने मळ्या छे–ते अमूल्य रत्नो
छे. मारा हाथमां आवा रत्नो आव्या छे. हजी मनुष्यभवमां हितनो अवसर छे. तो हवे
आ अवसरने हुं पापमां नहीं गुमावुं. अरेरे, में केवी मुर्खाई करी के आटला बधा भवो
समजीने सदुपयोग कर, एटले के तेमां कह्या प्रमाणे उत्तम आचरणवडे जीवादि तत्त्वोनुं
स्वरूप समज तो आखी जींदगी ने भविष्यमां सदाकाळ तने आत्मानी अपूर्व शांति
मळशे. अनंतभवनुं साटुं आ एक भवमां वळी जशे. तारा हाथमां रहेलो आ एक भव
वीत्या तेनो अफसोस छोडीने, हजी धर्मनो जे अवसर अत्यारे तारा हाथमां छे तेनो
उत्तम सदुपयोग करी ले. ‘जाग्या त्यांथी सवार.’
एवुं रत्न हाथमां ज छे...तेनो सदुपयोग करीने सुखी थाव.
ईहविध गये न मिले, सुमणि ज्यों उदधि समानी.