Atmadharma magazine - Ank 381
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 37 of 53

background image
: ३४ : आत्मधर्म : अषाढ : २५०१
श्री अर्जिका–माताजीनी साथे महान लाभ (पानुं ३० थी चालु)
पू. अर्जिका–माताजीनी आ वात सांभळीने बधी मुमुक्षुबहेनोने घणी ज
प्रसन्नता थई. त्यारपछी चंदना माताजी साथेना बीजा अर्जिकामाताए पण गंभीरताथी
कह्युं–बहेनो, माताजीए आत्मानी घणी मजानी वात समजावी छे; आवो सुअवसर
क््यारेक ज आवे छे, माटे तमे ऊंडो अभ्यास करजो. देहबुद्धिथी रागमां सुख मानीने
अनादिकाळथी विभावनो ज अभ्यास कर्यो छे तेथी जीव समकित न पाम्यो ने दुःखी ज
थयो. पण हवे महाभाग्यथी आवुं महावीर–शासन पामीने, देहथी भिन्न ने रागादिथी
पण विलक्षण एवा परम चैतन्यलक्षणस्वरूप आत्माने अनुभवमां लेजो; आत्माने
अनुभवमां लेवा माटे गंभीर थईने वारंवार ऊंडे–ऊंडे तेना स्वभावनो अभ्यास
करजो, तेनो अपार महिमा ओळखजो. तो अल्पकाळमां ज तमे समकित पामशो. अपूर्व
सुख पामशो, ने आ भवदुःख थी छूटशो.
माताजी कहे छे–बहेनो! सारा काममां ढील न होय, तेम धर्मना काममां ढील न
करशो; आत्महितने साधवामां वायदा न करशो. काले करीश, पछी करीश–एवो प्रमाद
नकामो छे. घणा जीवो एम विचारे छे के वृद्ध थाशुं त्यारे धर्म करीशुं,–पण रे जीव! तुं
वृद्ध थईश ज–ए क््यां खबर छे? वृद्धावस्था पहेलांं आयु पूरुं नहि थई जाय–तेनी शी
खातरी? अने, अत्यारे आत्मानी दरकार नथी करतो तो वृद्धावस्थामां तो शुं करीश?
–बेन, जीवननी क्षणभंगुरता जाणीने आत्मानी ओळखाणनुं काम सौथी पहेलांं करी
लेवा जेवुं छे. आ क्षणभंगुर देहनो भरोसो करवा जेवो नथी. संयोग पलटतां वार नथी
लागती. अरे, खारा समुद्र जेवो आ संसार, तेमां जैनधर्मनुं मीठुं अमृत मळ्‌युं छे.
ज्ञानीओए तो झेरसमान संसारने छोडीने चैतन्यनुं अमृत साधी लीधुं; अरिहंत जेवा
पोताना आत्माने ओळखी लीधो.
एक नानी बहेने सूक्ष्म तत्त्वजिज्ञासाथी पूछयुं: हे माता! अरिहंतदेवनी
ओळखाणथी आत्मानी ओळखाण थवानुं कह्युं छे; अमे अरिहंतने तो घणा वखतथी
पूजीए छीए; तेमना परमार्थस्वरूपनी एवी ओळखाण करावो के जेथी अमे आत्माने
ओळखीने सम्यक्त्व पामीए!
पू. माताजीए कह्युं: बेटी, धन्य छे तारी जिज्ञासाने! नानी उमरमां पण आत्मा
समजवानो आवो प्रेम जागवो ते अपूर्व हितनुं कारण छे. सांभळ, अरिहंतदेवना
आत्मा सर्वज्ञ छे, रागवगरना छे; देह ते कांई अरिहंत नथी, वाणी के समवसरण ते
पण अरिहंत