Atmadharma magazine - Ank 381
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: ३६ : आत्मधर्म : अषाढ : २५०१
वैराग्य–परिस्थितिनो विचार करीने अत्यारे ज सावधान था, ने बधेयथी मारापणुं
हठावी शीघ्र तारा स्वघरमां आव...ने तारा अनंतगुणना निजपरिवारने देख.
जीवे अनादिथी पोताने शरीरवाळो ज मान्यो छे; शरीर वगरना आत्मानुं साचुं
स्वरूप केवुं छे?–एनो तेणे कदी विचार पण नथी कर्यो; देहना भरोसे अनंतवार जीवन
व्यर्थ गुमाव्या छे. अरे, देह तो माटीनुं पूतळुं...रोगनुं घर, ने जीवन तो वीजळीना
झबकारा जेवुं क्षणभंगुर! तेमां सर्वोत्कृष्ट साचा देव–गुरु–धर्मनो संग मळ्‌यो, तो तेमणे
बतावेला आत्माने ओळखीने शीघ्र कल्याण करी लेवुं योग्य छे. आत्माने ओळखीने
पण संयमी जीवन जीववुं ते उत्तम छे. माटे, माता चंदना कहे छे के–हे मुमुक्षुबहेन!
अंतरमां ऊंडेऊंडे...ज्यां शांतिनुं वेदन भरेलुं छे त्यां ऊतरीने...चैतन्यस्वरूपनुं संवेदन
करी लेजो...तेमां तमने कोई अनेरा आनंदनो अनुभव थशे.
बधी मुमुक्षुबहेनो अत्यंत भक्तिना उल्लासथी एकसाथे बोली ऊठी–वाह
माताजी! चैतन्यतत्त्व बतावीने आपे परम उपकार कर्यो...अमे घणा वखतथी जे शोधता
हता ने जीवनमां जेने माटे झंखता हता, ते आनंदमय चैतन्यतत्त्व आजे आपे अमने
बताव्युं; अमारो अपार चैतन्यखजानो बतावीने ते केवी साधवो–ते समजावीने आपे
खरेखर अमारुं कल्याण कर्युं. अहो, कल्याणीमाता! आपना उपकारनो बदलो कई रीते
वाळीए!
माता! आवुं सुंदर चैतन्यतत्त्व सांभळीने मारुं मन संसारथी विरक्त थयुं छे;
चैतन्यनी अनुभूति सिवाय आ संसारमां हवे क््यांय क्षणमात्र चेन पडतुं नथी; बधुं
असार–असार लागे छे. पांचे ईन्द्रियोना विषयो नीरस लागे छे; ते ईंद्रियोने वश
थवाने बदले हवे चैतन्यरसवडे तेमने जीती लईश ने अतीन्द्रियभावथी सम्यग्दर्शन
पामीश. हे माता! हवे एकक्षण पण आ संसारना परभावमां रहेवुं पालवतुं नथी; मने
आपनी साथे ज राखो–जेथी हुं आत्माने समजी अर्जिका थईने मारुं कल्याण करुं, अने
आपनी साथे ज रहीने आपनी सेवा करीने मारुं आ जीवन धन्य बनावुं; अने
अल्पकाळे आ भवदुःखथी छूटीने सिद्धपदने पामुं. अहा, आपना जेवी मातानो साथ
मने मळ्‌यो–हवे हुं दुःखमां के अज्ञानमां केम रहुं? धर्ममाताना खोळामां मुमुक्षु–बाळकने
शी चिन्ता! हे मोक्षसाधक माता! तमारा शरणे आवतां हुं तो जाणे मोक्षमार्गमां ज
आवी गई छुं...हवे आपनी साथे ने साथे मोक्षना मार्गे चाली आवीश ने सिद्धपदने
प्राप्त करीश.
अमारा आत्मानो आवो उल्लास देखीने माताजीए घणा वात्सल्यथी अमारा माथे