Atmadharma magazine - Ank 381
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: अषाढ : २५०१ आत्मधर्म : ३७ :
हाथ मूकीने आशीर्वाद आप्या...माताजीना स्पर्शे अमारो आत्मा चैतन्यभावथी
झणझणी ऊठ्यो.
* * *
[अमृत जेवी मीठी वाणी वडे उपदेश आपीने, तथा मंगल आशीर्वाद
आपीने चंदना–माताजीए मारा आत्माने कल्याणनी अपूर्व प्रेरणा आपी; ने
बीजा दिवसे तेमनो संघ विहार करी गयो....पछी शुं बन्युं? ते सांभळो
]
अर्जिकामाताजीना संगथी मारो आत्मा जागी गयो ने अनेरा उमंगथी
अध्यात्मरसथी भींजाई गयो. संसारथी विरक्त थयेला मारा चित्तने हवे क््यांय चेन
पडतुं नथी, ए तो बस, एक चैतन्यने ज झंखे छे, ने ते माटे अर्जिकामाताना संगमां ज
रहेवा चाहे छे. माताजी तो एक ज दिवसना संगमां मने जगाडीने आत्मानी अपूर्व
प्रेरणा आपी गया...ने बीजे विहार करी गया.
बीजे दिवसे ज्यारे हुं जिनमंदिरे गई ने शास्त्रस्वाध्याय करती हती त्यारे पण
मारा हृदयमां अर्जिका माताजीए रेडेला अनुभूतिना तरंगो ज घोळाता हता...हुं
अनुभूतिना ऊंडा ऊंडा मथनमां ऊतरती जती हती. एवामां मारी धर्मसखी आवी
पहोंची, ने मने जोतांवेंत कह्युं–दीदी! आज तुं कोई गंभीर वैराग्यथी ऊंडा विचारमां
लागे छे, तारा मुख पर आज कोई अनेरी प्रसन्नतानी झलक देखाय छे. तो जरूर कोई
आनंदकारी प्रसंग बन्यो छे.–शुं बन्युं छे! ते कहे.
मुमुक्षुबेन:–सखी, तारी वात साची छे. काले संघमां परम वैरागी अर्जिका
माताजीनो सत्संग थयो; माताजीनी ऊंडी अनुभूतिनी गंभीर छाया तेमनी मुद्रा उपर
पण झळकी रही हती. माताजीए महान कृपा करीने मने अनुभूतिना रहस्यो
समजाव्या. बस, त्यारथी अनुभूति सिवाय बीजे क््यांय मने चेन पडतुं नथी.
सखी:–वाह बहेन! तारी वात सांभळीने मने पण अपार आनंद थाय छे. बेन,
अनुभूतिना उद्यममां हुं पण तारी साथे ज छुं. माताजी साथे शुं चर्चा थई! ते मने कहे.
सांभळ बेन! माताजीना संगमां तो अपूर्व लाभ मळ्‌यो; माताजीने आहारदान
दीधुं, माताजीनी परम शांत ध्यानदशा देखी...अहा! शी निर्विकल्प मुद्रा!–ए तो
चैतन्यनी स्फुरणा जगाडती हती. पछी माताजीए आशीर्वाद आप्या, ने
मनुष्यअवतारनी सार्थकता केम करवी ते बताव्युं; आत्मानो अनेरो महिमा समजावीने
सम्यग्दर्शननी रीत