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के बस! हवे आत्मा ते कार्य साधवा माटे मरणियो बन्यो छे...एना वगर हवे एक
क्षण पण चेन पडतुं नथी.
मुमुक्षु: सांभळ बेन! जेमां शांति भरी छे एवा पोताना आत्माने जोवा
केवो छे? राग वगरनो तेनो ज्ञानस्वभाव केवो छे?–एने लक्षगत करीने
अनुभवनो प्रयोग करवो जोईए. आत्मामां परमात्मा थवानी ताकात भरी छे
अने स्त्रीपर्यायमां पण ते परमात्मपदनी साधनानो प्रारंभ थई शके छे. ते माटे
आत्मानी ऊंडी जिज्ञासाथी धर्मात्माओनो संग करवो जोईए; अरिहंतदेवनो
आत्मा राग वगरनो चैतन्यभावमय केवो छे? ने तेवुं ज स्वरूप पोतामां कई रीते
छे? ते बराबर ओळखतां जीवने जरूर सम्यग्दर्शन थाय छे. वीरप्रभुना शासनमां
हजारो–लाखो स्त्रीओ पण आवुं सम्यग्दर्शन पामी छे, ने अर्जिका पण थई छे.
–एवा माताजीनुं आदर्शजीवन देखीने आपणे पण आत्मानी लगनी लगाडीने,
आत्माने मोक्षमार्गमां जोडी देवो. बेन, सम्यग्दर्शनमां घणी गंभीरता, ने अपूर्व
शांति छे–तेनो महिमा लावीने, ऊंडी–ऊंडी धगशथी स्वानुभूतिना प्रयोगमां लाग्या
रहेवुं–ए ज सम्यग्दर्शननो साचो–सरळ ने सुखकर उपाय छे.
जरूर आवे ज छे. अनुभूतिनो प्रयोग करतां करतां क्षणेक्षणे मिथ्यात्वनो रस तूटतो
जाय छे ने चैतन्यनो रस वधतो जाय छे.–ए ज धाराथी आगळ वधतां–वधतां
ज्ञानधारा स्वसन्मुख थईने मोहने तोडी नांखे छे ने अपूर्व सम्यक्त्व प्रगट करे छे.
अहा बेन! परमवात्सल्यपूर्वक आ बधुं समजावीने माताजीए तो जाणे साक्षात्
सम्यग्दर्शन ज आप्युं!–एवो अपार हर्षोल्लास थाय छे.
मस्तक पर हाथ मूकीने आशीर्वाद आपता होय एवी ऊर्मि जागे छे. बेन, हवे तो
शूरवीर थईने