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केवळज्ञाननो तो अवसर आपणने आ भवमां नथी पण सम्यग्दर्शन माटेनो तो
अवसर आपणने मळ्यो छे, तो सम्यग्दर्शन वडे जीवन कृतार्थ करी लईए...
आत्मअनुभूति करीने माताजीना उपकारने आजे ज सफळ करीए.
मांगे छे, वच्चे विकल्पो रहे तेमां तेमने अशांति लागे छे एटले ज्ञानने तेनाथी छूटुं
पाडती जाय छे. क््यारेक चैतन्यनी झांखी–झांखी शांति देखाय छे. पण तेमां ते संतोष
मानती नथी, आनंदना साक्षात् अनुभव माटे आगळ ने आगळ वध्ये जाय छे;
अनुभूति थवामां थोडी वार लागी तेथी निराश नथी थई जती, पण उत्साह वधारती
जाय छे ने निःशंकता राखे छे के आ ज मार्गे हुं पुरुषार्थ वधारे करीश एटले मने हवे
नीकटमां ज जरूर आत्मप्राप्ति थशे; हवे हुं आत्माने लीधा वगर पाछी फरवानी नथी के
वच्चे क््यांय अटकवानी नथी. आम धीरजथी अंतरमां अत्यंत सूक्ष्मपणे ज्ञान अने
कषायोथी छूटो पाडीने तेनो स्वाद लेवा लागी.
नथी, एक मात्र सहेलामां सहेलो मंत्र जैन संतोए आप्यो छे–ते ज
जीवतो ज छुं. चेतनभावथी जोतां मारुं कदी मरण छे ज नहि. बस!
आ रीते आत्माने चेतनभावे ओळखतां जीवनुं कदी मरण थतुं
नथी, ते अमरपदने पामे छे, तेनो मृत्युभय मटी जाय छे.–आ छे
मरणथी बचवानो अमोघ मंत्र.