Atmadharma magazine - Ank 381
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: अषाढ : २५०१ आत्मधर्म : ४१ :
जाय छे, भेदथी ते खंडित थतो नथी; ते जीवने अभेद आत्मानी अनुभूति थई–मोहनी
सेनाने नष्ट करनारो शुद्धनय, तेणे आत्माने परद्रव्योथी अत्यंत विविक्त कर्यो छे अने
पोताना समस्त ज्ञानादि विशेषोने सामान्यमां लीन कर्या छे.–आवा शुद्धनयवडे जेणे
पोताना शुद्धआत्मतत्त्वने उपलब्ध कर्युं छे–अनुभवमां लीधुं छे, ते आत्मा पोताना
सहज चैतन्यप्रकाशवडे प्रकाशमान रहेतो थको मुक्त थाय छे; तेथी ते अभिनंदनीय छे.
आवा स्वज्ञेयने जाणीने वारंवार तेनी अनुभूतिमां रहेवुं ते ज्ञेयोने जाणवानुं
फळ छे. स्व–परज्ञेयोने जाणीने स्वज्ञेयनी अनुभूतिमां जे प्रशमरसनुं पान करे छे ते
जीव प्रशंसनीय छे.
ज्ञायकभावरूप पोतानो आत्मा ते स्वतत्त्व छे; ने अन्य जीव–अजीव समस्त
पदार्थो परज्ञेयो छे. आवा स्व–पर समस्त पदार्थो पोतपोताना कर्ता छे, अन्य कोई
तेनो कर्ता नथी. सर्वज्ञ भगवाने केवळज्ञानवडे स्व–पर ज्ञेयोनुं जेवुं स्वरूप साक्षात्
जोयुं तेवुं दिव्यध्वनिरूप प्रवचनमां कह्युं, ने तेनो सार आ ‘प्रवचनसार’मां
आचार्यदेवे संघर्यो छे. तेमां आचार्यदेव कहे छे के चैतन्यरूप गुण–पर्यायोने
चेतनद्रव्यमां ज अंतर्लीन करीने केवळ आत्माने जाणतां निष्क्रिय (विकल्परहित)
चैतन्यमात्र भाव प्राप्त थाय छे एटले के मोहनो नाश थईने सम्यग्दर्शन थाय छे.
(प्र. गा. ८० टीका)
चेतननी सर्व व्यक्तिओ चैतन्यसामान्यमां अंतर्लीन–अभेद छे, तेथी
अनुभूतिस्वरूप आत्माने ‘अव्यक्त’ कहेवामां आवे छे. (स. गा. ४९ टीका) तेम अहीं
कहे छे के आत्माने परद्रव्य साथे ज्यां संपर्क छूटी गयो त्यां अशुद्धता न रही, शुद्ध
परिणमन थतां पर्यायो द्रव्यनी अंदर प्रलीन थई गई, एटले शुद्धआत्मानी ज
अनुभूति रही; ते अनुभूतिमां वीतरागी प्रशमरसनुं झरणुं झरे छे. आवा प्रशमनी
प्राप्ति ते ज ज्ञेयतत्त्वोने जाणवानुं फळ छे.
हे जीव! तुं तारा स्वाधीन स्वभावने तो ओळख. चेतनभावना कार्यरूप थवानुं
ने तेना फळरूप–सुखरूप थवानुं सामर्थ्य तारामां ज छे, तारो आत्मा ज पोताना
भावथी ते–रूपे परिणमे छे. अज्ञानदशा वखते तेना फळमां दुःखरूपे पण आत्मा पोते
एकलो ज पोतामां परिणमतो हतो, ते परिणमनमां कोई बीजुं न हतुं. अत्यारे स्व–
परनी भिन्नताना ज्ञानवडे, एकत्वरूप शुद्धआत्माने अनुभवतो थको अतीन्द्रियसुखरूपे
हुं पोते थयो छुं, मारा सुखपरिणमनमां हुं एकलो ज छुं, तेमां कोई बीजुं नथी.