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मोक्षमार्गमां हुं एकलो ज छुं, बीजा कोई साथे मारे कांई लागतुंवळगतुं नथी.
अमने शुद्धआत्मानी घणी भावना छे,–तो एने साची मुमुक्षुता नथी कहेता; शुद्धात्मानी
साची भावना होय तो शुद्धतारूपे परिणम्या वगर रहे नहि ने तेना फळरूप अतीन्द्रिय
आनंदनो अनुभव थवा वगर रहे नहि. अहा, मुमुक्षु एटले तो मोक्षनो पंथी! एने
वळी परना संबंधनी भावना केवी? परना संबंध वगर, परथी सर्वथा भिन्न, पोताना
एकत्वमां झूलतो–परिणमतो ने शुद्धताने अनुभवतो ते आनंदथी मोक्षना पंथे चाल्यो
जाय छे.
आत्मानी धर्मपरिणतिनो कर्ता आत्मा एकलो ज छे, बीजो कोई कर्ता नथी. तेम
कारण–कार्य–फळ बधुं पोतामां ज एकमां ज समाय छे, जुदा नथी रहेता.–आवी
अनुभूतिनुं नाम एकत्वभावना छे. एकमां बंधन न होय, एकमां अशुद्धता न होय;
एटले परथी भिन्न पोताना एकत्वमां परिणमता ते जीवने बंधन के अशुद्धता थता
नथी; ते शुद्धरूपे परिणमतो थको मोक्षपदने पामे छे.–ते प्रशंसनीय छे.
ज्यारे आखो संसार ज दुःखरूप छे, त्यारे तेमां दुःखना एकेक
वगरनो कोई एवो भाव (सम्यक्त्वादिरूप) प्रगट करवो के जे स्वयं
सुखरूप होय.
संसार अने सुख ए बंनेनो मेळ क््यांथी मळे?
एकथी छोडावीने बीजामां लई जवा माटे तो जैनधर्म छे.